मुसकुरा कर फूल को ,यार पागल कर दिया प्यार ने अपना जिगर ,नाम तेरे कर दिया आस से ना प्यास से ,दूर से ना पास से आँख तुमसे जब मिली ,बात पूरी कर दिया
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दिल मेरा मुझसे अब अक्सर, पूछता है बस यहीदिल मेरा मुझसे अब अक्सर, पूछता है बस यही |यूँ मुझे गैरो को देने, का तुम्हे अधिकार क्या है ?तुमने किया वादा मुझी से, दिल्लगी थी तो कहो फिर |गर वो सब कुछ दिल्लगी थी, तो कहो फिर प्यार क्या है ?क्यूँ हुई चाहत तुम्ही पे, प्यार में खुद क
दिल गिरवी रख दिल गिरवी रख वापस आये, दो अनजाने नयनन मे जो कहना था कह नहि पाये , क्या कहना इस उलझन मेक्या होती है सुन्दरता कोकल ही मैने जाना था,हम कितने लल्लू थे परवो तो बड़ा सयाना था,चलते-चलते उसने मुड़कर तिरछी नजर से देखा था,फिर हौले से रुककर इकनैन कटार सा फेंका था,जो लगा था सीधे सीने मे,पर तकलीफ हु
मां पर कुछ पंक्तिया जो मैने लिखी__एक कागज की पूरी तरह निशानी मिट गई ,बस कागज पर लिखे शब्द मां की स्याही बच गई।जला दी पुस्तकालय की सारी पुस्तके ,जलकर राख हो गई ।भूल से जल गया मां लिखा हुआ शब्द धुएँ मे माँ की तस्वीर बन कई।हम बडे सुख से सोते थे,सपने देखने के लिए मां सारी रात जागती थी,हमे सोता हुआ देखने
मुस्कुराते थे जहां उनकी मुस्कान देखकर कभी उन्ही के साथ,किस्मत देखिये उन्ही की याद मे तन्हा फफक कर रोए वही आज
आज फिर आंखो मे मेरी आंसू भर आयेहोठो पर गम सोया है तुम तो हसने वाले हो मेरे दोस्त तुम्हे क्या पता मेरी इन आंखो ने कितना रोया है
फैल रही है मेरे महबूब के जिस्म की खुश्बू, गुलो के आशियाने मे सुना है इस बार बेवक्त बसन्त आने वाला है।
गजल सा हमको भी गाओ तो कोई बात बने करीब होठो के आओ तो कोई बात बने नही बुझा सका सावन भी प्यास को मेरी तिशनगी तन की बुझाओ तो कोई बात बने
कही कवि ना बन जाऊ ऐ कविता तेरे प्यार मेहै नही तुम जैसा कोई सारे इस संसार मेहै नशा तुझमे बड़ा कविता है चाहत मेरीगा रहा था मै गजल थी वही पर तू खडीबह रहा हूं मै यहां तेरी आंखो की धार मेकही नीर ना बन जाऊॅ ऐ सरिता तेरे प्यार मे