तलाक कहूं या विवाह -विच्छेद ,बहुत दुखद होता है किन्तु बहुत सी शादियां ऐसी होती हैं जिनमे अगर तलाक न हो तो न पति जी सकता है और न पत्नी ,बच्चों के तो कहने ही क्या ,ऐसे में तलाक आवश्यक हो जाता
ट्रिपल तलक आस्था नही,अधिकारों की लड़ाई है ।ट्रिपल तलाक पर रोक लगाने काबिल लोकसभा से तीसरी बार पारित होने के बाद एक बार फिरचर्चा में है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में ही इसे असंवैधानिक करार दे दिया था लेकिन इसे एक कानून का रूप लेने केलिए अभी और कितना इंतज़ार करना होगा यह तो समय ही बताएगा। क्योंकि
हाल के माननीय सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक कोअसैम्बधानिक करार देने से ,फिर से यूनिफार्म सिविल कोड की मांग समाज मे उठाने लगी है | यूनिफार्म सिविल कोडक्या है ?यहनियमो का वह सेट है जो भारत मे विभिन्न पर्सनल लॉ को समाप्त कर एक ही पर्सनल लॉबनाएगा जो सभी धर्मो पर लागु होगा | हलाकि इस सम्बन्ध मे अभी तक सरकार
कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे अवैध करार दिया था। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक को गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद ये एक चुनावी मुद्दा बन गया। लैंगिक न्याय और समानता को ध्यान में रखते हुए कैबिनेट की मंजूरी के बाद ट्रिपल तलाक के अध्यादेश को राष्ट्रपत
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कैबिनेट ने ट्रिपल तलाक़ बिल में संशोधन को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा की 2017 में 389 ट्रिपल तलाक के मामले दर्ज हुए हैं और 2017 से 2018 के बीच 229 केस सुप्रीम कोर्
केंद्रीय कैबिनेट ने तीन तलाक विधेयक 2017 में कुछ संशोधन को मंजूरी दे दी है| जिसमें तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत को गैर जमानती अपराध तो माना गया है लेकिन संशोधन के हिसाब से अब मजिस्ट्रेट को बेल देने का अधिकार होगा|इस विधेयक के अनुसार ,
आज वर्तमान में हमारे देश की सबसे गंभीर समस्या तेजी से पनप रही है वह है तलाक नामक बीमारी ! जो व्यक्ति या नारी इस बीमारी से गुजरा है या गुजर रहा है तलाक नाम सुनते ही खुद अपने आपको दुर्भाग्यशाली समझने लग जायेगा ! आखिर यह समस्या क्यों पनप रही है ! आज क्यों अदालतो में हजारो लाखो इस तरह के केस लंबित पड़े