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ताराबाई चॉल : कमरा नं. एक सौ पैंतीस : सुधा अरोड़ा

25 मई 2023

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रचनाएँ
प्रतिरोध के प्रतिमान : घरेलू महिला कामगार
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घरेलू महिला कामगार कामकाजी या फिर नौकरीपेशा महिलाओं से अलग और अधिक जटिल चुनौतियों के बीच अपने जीवन यथार्थ से जूझती रहती है। स्त्री विमर्श ने घरेलू महिला कामगारों के समुदाय को अभी तक विषय नहीं बनाया है। एक ओर निजी परिवार और समाज की चुनौतियां झेलती हैं और उसके विरुद्ध प्रतिरोध रचती हैं, तो साथ ही मालिक सदस्यों के परिवार में भी संघर्ष और प्रतिरोध के बीच अपने सपने सजाती रहती हैं। इन परिस्थितियों के मूल में परिवार की मालकिन सदस्य एवं घरेलू महिला कामगार दोनों का काम के प्रति गुलामी या दास वाली सोच सक्रिय रहती है। इससे निजात पाने के लिए परिवार घरेलू महिला कामगारों पर निर्भर है, तो इस निर्भरता का पूरा लाभ भी घरेलू महिला कामगार उठाती हैं। इस दौरान इनके संघर्ष, स्वप्न, इनके श्रम एवं यौन शोषण तथा यदा-कदा सांप्रदायिक संदर्भ वर्तमान समय में जटिल समस्याओं के रूप में उभरते रहते हैं। इन्हें विषय बनाकर विमर्श नए आयाम को खोलेगा, तो साथ ही समग्रता को उपलब्ध भी होगा। यही इस कहानी संग्रह की उपलब्धि रहेगी।
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प्रतिरोध के प्रतिमान : घरेलू महिला कामगार

25 मई 2023
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  सृजन का लक्ष्य जरूरी 'संवेदन-संसार' निर्मित करना होता है, ताकि प्रतिरोध की जमीन तैयार की जा सके। इस दिशा में विमर्श ने ऐतिहासिक पहल की है। इसके बावजूद घरेलू महिला कामगार विमर्श का एक अछूता अध्याय है

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राधा-अनुराधा : भीष्म साहनी

25 मई 2023
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हवा में गूंजती हुई आवाज आयी :   "रा…धा…!" इसका मतलब है, धोबी काम पर आ गया है और गली में बैठकर इस्त्री गरम कर रहा है और उसकी बेटी राधा घरों में झाड़ू-बर्तन करने के लिए जाने लगी है। अब वह हर आध-पौन घण्

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क़िस्सा आज का : मृदुला गर्ग

25 मई 2023
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एक सफल पुरुष है (राजा नहीं)। तराशी हुई पत्नी के साथ रहता है (पत्नी सुंदर है या नहीं, कोई नहीं जानता। तराश इतनी बा-कशिश है कि नज़र रहता है (महल में नहीं)। राजा निरबंसिया नहीं है। एक सजा संवरा लड़का भी

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विदा गीत : चंद्रकांता

25 मई 2023
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"पनसा गाछे द्वि पत्र काला सोलह बरसरु काटिलु गला गाछे काटि देले मूलरू चक्का  कालि बनस्तकु छाड़ू छू एका..." भाविनी गुनगुना रही है और बड़ी तन्मयता से बरतन मांज रही है, तन्मयता गीत को दूर तक ले जात

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राजपाट : अर्चना वर्मा

25 मई 2023
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आधी रात को अचानक जाग कर वह दिवास्वप्न देखता है और दिन भर सपने में ही चलता-फिरता रहता है।     आज भी आधी रात को वह उठ बैठा, पंखे से ओझल अंग पसीने की सरसराती गुदगुदाती धारियों में पिघल कर बहे जा रहे थे।

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उमा-महेश : उषा किरण खान

25 मई 2023
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बिटिया सोनम ने पाँचवीं पास कर लिया था। उमा उमंग में डूबी रही दिन भर। साँझ होते ही उच्च विद्यालय की अवकाश प्राप्त शिक्षिका मालती सिन्हा के घर पहुँची और सोनम का प्रमाण-पत्र दिखलाया। 'यह अच्छे अंक लेकर

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ताराबाई चॉल : कमरा नं. एक सौ पैंतीस : सुधा अरोड़ा

25 मई 2023
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उसके अड़तीस वर्षीय मरद की मौत हुए आज चौदहवां दिन था। नहाने के बाद निचोड़े हुए पेटीकोट से अपना गीला बदन पोछते हुए अचानक उसकी निगाह आईने पर पड़ी । उसने आईने की धूल को गीली उंगलियों से पोंछ दिया। व

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लौट आओ तुम... ! : ज़किया ज़ुबैरी

25 मई 2023
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(1) “बीबी...! कहाँ हैं आप... !” ''मैं नीचे हूं आपा... ड्राइंग रूम में।'' “क्या कर रही होगी...शायद... सफ़ाई कर रही होगी...!” आपा ने सोचा। “आपा मैं चाय पीकर आती हूं...।” बीबी जवाब देकर खो गई -

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नाम में बहुत कुछ रखा है... : शोभा सिंह

25 मई 2023
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क्या नाम है?’ ‘रानी।’ संक्षिप्त-सा जवाब था। कॉलोनी का गार्ड उसे लेकर आया था। थोड़ी-सी आवश्यक बातचीत करके उसे काम पर रख लिया। सड़क के दूसरे छोर पर बने घर में वह काम करती थी, इसलिए सहज ही विश्वास कर लिया।

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रोशनी के अच्छे दिन : क्षमा शर्मा

25 मई 2023
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दिवाली अभी गुजरी थी और भरी दोपहर में सरदी के साए उतरते चले आ रहे थे। आसमान में उड़ते पक्षी ऐसे दिखते थे कि बिल्कुल जमीन पर चल रहे हों।  सड़क पर मूंगफली और गजक का ठेला लगा था। मूंगफली वाला, सरसों के

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नशा हिरन : हरि भटनागर

25 मई 2023
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नशा हिरन उसकी आंखों में नशा है नशे में सपना सपने में मैं और मैं में वह! यह किसी कविता की पंक्ति नहीं है। उद्गार है मेरा, बाई के लिए जो हमारे घर का बर्तन मलती है, झाडू लगाती है, पोंछा भारती है

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जुड़े हुए हाथ : उर्मिला शिरीष

25 मई 2023
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आज तीसरा दिन था जब बाई ने उनसे बात नहीं की। आज का सुना दिन भी बिना बातचीत के  गुजरता जा रहा था और यह गुजरा हुआ वक्त उसकी बेचैनी बढ़ाता जा रहा था। कई बार वक्त किसी एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द सिकुड़कर

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मोह, माया और मंडी : जयंती रंगनाथन

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सामने से बहुत तेज जीप आ रही थी, रोशनी से बैजन की आंखें चौंधिया गई एक क्षण को लगा कि वह मोटर साइकिल पर अपना संतुलन ही खो बैठेगा। सड़क खाली तो करनी ही थी सामने वाली गाड़ी के लिए, जैसे ही वह गाड़ी सड़क स

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डाउनलोड होते हैं सपनें : गीताश्री

25 मई 2023
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सांवले गालों पर काजल की लंबी गीली लकीरें खिंची चली जा रही थीं। आज बहुत दिनों के बाद तो वह खुल कर रो पा रही थी। दोराहे पर खड़ी जिन्दगी से और उम्मीद भी क्या करे? चकाचौंध से भरी एक दुनिया उसे अपनी तरफ बु

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अब नहीं रुकूंगी ... : कविता वर्मा

25 मई 2023
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जैसे तैसे काम ख़त्म कर मंगला अपनी कोठारी में आयी और दरवाज़ा बंद करते ही उसकी रुलाई फूट पड़ी। वह वहीं दरवाजे से पीठ लगाये बैठ गयी। और घुटनों में सिर छुपा कर देर तक रोती रही। बहुत देर रो लेने के बाद भी वह

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फुलवा : वंदना बाजपेयी

25 मई 2023
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उफ़! अभी तक महारानी नहीं आयीं, घडी देखते हुए मेरे मुँह से स्वत: निकल गया। सुबह का समय वैसे भी कामकाजी औरतों के लिए बहुत कठिन होता है, एक हाथ और दस काम, क्या–क्या करूँ? आखिर इंसान हूँ या मशीन, ऊपर से का

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बड़ी उम्र की औरत : सरिता निर्झरा

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शहर में अकेले रहते रहते आदत हो गई थी, किसी न किसी कामवाली के साथ होने की। अब मेरी बंगालन कामवाली दुर्गा पूजा की छुट्टी बोल कर अपने देश चली गयी। अपने देश ! कोलकाता की नहीं थी बांग्लादेश की थी, तो अपने

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‘बराबाद’.... नहीं आबाद : प्रज्ञा रोहिणी

25 मई 2023
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‘‘क्या नाम लेती हो तुम अपने गांव का...हां याद आया गन्नौर न। सुनो आज गन्नौर में दो प्यार करने वालों ने जान दे दी ट्रेन से कटकर।’’ ‘‘हे मेरे मालिक क्या खबर सुणाई सबेरे-सबेरे म्हारे मायके की। जी भाग गए

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बराबरी का खेल : शिल्पी झा

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एक-एक बढ़ता सेकेंड अब मुझपर भारी पड़ रहा था...लेकिन दरवाज़ा पकड़े वो अपनी सशक्त उम्मीदवारी का सारा परिचय जैसे अभी के अभी दे देना चाहती थी। मैं अपने इस घिसे-पिटे इंटरव्यू को जल्द से जल्द निपटा लेना चाह

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फिर मिलना कारी : उर्मिला शुक्ल

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आज कारी आयी थी। वो आती तो अक्सर थी, मगर आज का आना अलग ही था। एक बार फिर अपने सिंदूर और चूड़ियों के लिये आशीर्वाद लेने आयी थी वो। आज उसे मंगलू के नाम की चूड़ी पहनाई गई थी। किसी के नाम की चूड़ी पहनना रस्म

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ये हौसला : प्रियंवरा

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उस दिन गार्गी उदास-सी घर के कामों में उलझी थी। उसकी उदासी को समझ पाना बहुत ही आसान था, क्योंकि जब वह खुश-प्रफुल्लित रहती है, या तो कोई प्यारा सा बांग्ला गीत गुनगुनाती है या फिर यहां-वहां की बातें बांग

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