कल मिलने आइ वो,
मेरा पसंदीदा पकवान लाई वो।
हम दोनो बहुत सारी बातें किये,
उसकी और मेरे नयन ने भी मुलाक़ातें किए।
अचानक से पूछी मुझसे.
ये बताओ, मुझमे और इश्क़ में क्या अंतर हैं?
मैंने कहाँ, तुझमें और तेरे इश्क़ में अंतर है इतना,
तु ख़्वाब है और वो है सपना।
अब वो नाराज़ हो गईं,
रोते-रोते मेरे हाई कँधो पर सो गईं।
उठ कर बोली वो फिर से,
ऐसा क्यूँ सोचा है तुमने।
क्या तुम्हें याद नहीं माँ की बात सुन कर हर बार मैं आइ हूँ
शिर्फ तुम्हारे लिए दुनिया की झूठी अफ़वाह सुनकर भी मुस्कराई हूँ।
मैंने कहा, बाबु हर बात याद है मुझे,
मैंने कब कहा कि तुम मुझे भूल पाई हों।
आने दो वक़्त हर बात बताऊँगा,
बदलने का अन्दाज़ दिखाऊँगा।
आज कहती हो, थम जाती हैं। तुम्हारे बग़ैर साँसे हमारी,
कल तुम्हीं कहोगी, मैं सम्भल जाऊँगी ख़ुद सम्भालो मेरे बग़ैर ज़िन्दगी कवाँरी।
आयेंगे तुम्हारे भी सजना,
रहने तुम्हारे दिल के आँगन में।
उन्हें भी सेज पर रूह सौंपोगी,
क्या जो इश्क़ हुआ है मुझसे,
वही उनसे कर पाओगी।
चलो मान लिया भूल जाओगी,
मेरे इश्क़ को ग़लती समझ कर मिटाओगी।
कही मिल गया अनजान रास्ते पर तो.
जैसे आज हर बात कहती हो मुझसे,
वैसे ही उस दिन भी पाओगी।।
इसी लिए कहता हूँ तुममें तुम्हारे इश्क़ में अंतर है इतना
तुम झूठी ख़्वाबो में हो अपनी और,
इश्क़ है मेरा सच्चा सपना।