तु वो बाग़ की कोमल कली है
तुझे तोड़ा अधर्मी वो बली है
जिसे तूने तन मन से माना है
उसने ही तुझे ये पापी दाग़ में साना है
मैं माली हूँ बाग़ से टूटे कली का
तु कर भरोसा मेरे साँस की
तेरा छोड़ अब किसका होने वाली हूँ
तुझे डर किस बात की
देख मुझे हज़ारों ग़म है फिर भी मतवाली हूँ
तु छंद है मेरे पंक्तियों की
मैं नशा की प्याली हूँ