उठाया है क़लम तो इतिहास लिखूँगा
माँ के दिए हर शब्द का ऐहशास लिखूँगा
कृष्ण जन्म लिए एक से पाला है दूसरे ने उसका भी आज राज लिखूँगा
पिता की आश माँ का ऊल्हाश लिखूँगा
जो बहनो ने किए है त्पय मेरे लिए वो हर साँस लिखूँगा
क़लम की निशानी बन जाए वो अन्दाज़ लिखूँगा
काव्य कविता रचना करना तो बस कला है
जो पढ़ कर आँखों के नीर अंदर हो जाए वो प्यास लिखूँगा