उठो कि उन आंखों को पोंछो, जिनसे आंसू छलक रहे हैं,
उठो कि उन गिरतों को थामों, जो सहमे से भटक रहे हैं।
उठो कि उन भूखों को पूजो, जो फांकों से खेल रहे हैं,
उठो कि उन बदनों को ढांपो, जो नंगापन झेल रहे हैं।
उठो कि उनको खुशी खिलाओ, जो मुस्काना भूल गए हैं,
उठो कि उनको हंसी पिलाओ, जो हंसना सा भूल गए हैं।
उठो कि उनको गले लगाओ, जो अपनो से बिछड़ गए हैं,
उठो कि उनको फिर बसाओ, जो बिल्कुल ही उजड़ गए हैं।
उठो कि उनसे रिश्ता जोड़ो, जो रिश्तों से टूट गए हैं,
उठो कि उनका साथ निभाओ, जो तन्हा से छूट गए हैं।
उठो कि उनको जीना सिखाओ, जो जीवन से हार रहे हैं,
उठो कि उनको लड़ना सिखाओ, जो खुदको दिक्कार रहे हैं।
उठो कि उनको इतना बता दो, दुनियां उनके साथ खड़ी है,
उठो कि उनको इतना बता दो, मुश्किल बस दो चार घड़ी है।
उठो कि उनको कसम खिला दो, हमको जीना ही जीना है,
उठो कि उनको कसम खिला दो, गम़के सागर को पीना है।
उठो कि उनको यकीं दिला दो, बुरे वक्त से जो भी लड़ा है,
उठो कि उनको यकीं दिला दो, मालिक उसके साथ खड़ा है।
(अशोक वशिष्ठ)