दौर-ए-जुमला लेके आया इक अजब राही ,
उसके जलवों को लिखेगी वक्त की स्याही ।
लोगों ने सर पे बिठाया मान फरिश्ता
लूट ली सम्मोहनी से उसने वाहवाही ।
भाषणों, उद्बोधनों, संम्बोधनों के साथ ,
दूर की बेरोजगारी और मँहगाई ।
कोसते रहते थे जिसको चंद दिन पहले,
हर कदम महिमा उसी ' आधार' की गाई ।
गैस ,डीजल और फिर पेट्रोल की कीमत ,
क्रूड की कीमत के गिरने पर न गिरवाई ।
बेतहाशा बहाई इस देश की दौलत ,
गंगा मइया आज तक ना साफ हो पाई ।
अदला बदली आए दिन होती वजीरों की ,
मानों अब तक वो यकीनी फौज न पाई ।
कुछ नहीं बदला , मगर उसने कहा बदला ,
.बात लोगों को ये अब जाकर समझ आई ।। .............................................................................