जब तक 'दिवस' मनायेगी,
हिंदी 'विवश' कहायेगी ।
शेष दिवस विसमृत करने से,
'मृत काया' अमृत भरने से,
प्राण न ये पा पाएगी !
जन गण मन स्वीकारे तब ,
हर दिन इसे पुकारे तब ,
वरना ये कुम्हलायेगी !
काम अनेकों ,नाम अनेकों ,
लड़े मुक्ति संग्राम अनेकों ,
ध्वजा अगर रुक जायेगी !
जिसका हक़ सिंघासन हो ,
हश्र अधोतल आसन हो ,
कब रानी बन पायेगी !
हिंदी 'विवश ' कहाएगी !!