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भोर का साहित्य

17 सितम्बर 2017

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कहने को तो आजकल

सब हैं लिखे पढे .

'भोर का साहित्य पढते

सोच में पडे ..............


हर खबर का रंग काला

काँपती कांठी में ज्वाला ,

रेप, हत्या ,

लूट, हरण ,

कीर्तिमान गढे !


राकछसी तक शर्मशारी ,

कुकृत्यों की महामारी ,

देख हतप्रभ,

जानवर भी ,

काठ से खडे !


भय रहा अपमान का

न पूर्वजों के नाम का,

धन पिपासा ,

वासना की ,

कीच में गडे !


इससे थे अनपढ भले ,

बिना डर भय के पले ....

गांव भर 'आँगन '

जहां स्वच्छन्द

खेल ते बढे !


कल्पना से परे पतन ,

देख थर्राये ये मन ,

क्यों नहीं

नैतिक अधोगति

से कोई लडे? ! ................

सुशील चन्द्र तिवारी की अन्य किताबें

18 सितम्बर 2017

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

सुशील जी | बहुत ही सशक्त और मन को बार बार कचोटने वाली रचना है यह आपकी | बहुत बहुत बधाई |

18 सितम्बर 2017

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हिंदी दिवस

16 सितम्बर 2015
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जब तक 'दिवस' मनायेगी,हिंदी 'विवश' कहायेगी ।शेष दिवस विसमृत करने से,'मृत काया' अमृत भरने से,प्राण न ये पा पाएगी !जन गण मन स्वीकारे तब ,हर दिन इसे पुकारे तब ,वरना ये कुम्हलायेगी !काम अनेकों ,नाम अनेकों ,लड़े मुक्ति संग्राम अनेकों ,ध्वजा अगर रुक जायेगी !जिसका हक़ सिंघासन हो ,हश्र अधोतल आसन हो ,कब रान

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मेरे द्वार

18 अक्टूबर 2016
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डगर डगर,गुलशन चली !बहकी हुई बयार !डाल डाल,तितलियों के,मदहोशी उदगार !फूल फूल,मुसकान है,भृमर करें सतकार !कली कली,करती मलय !मान मेरी मनुहार !खिल खिल,तुझे रिझाऊंगी,कल है अपनी बार !ठहर ठहर जा,पवन बस !इक दिन मेर द्वार ! !

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परियों की कहानी

19 अक्टूबर 2016
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क्या खूब भी होतीं हैं ये,परियों की कहानी ,बच्चों को आज रात भी,भूखा सुला दिया !!

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शुभ दीपावली

30 अक्टूबर 2016
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बदलता परिवेश ,परिवर्तित सी परिभाषा ,पर्व परिपाटी पुरातन ,परिष्कृत आशा !सनातन निर्वहन ,उत्सव दीप दानों का !प्रकाशित अविरल ,रहेगा चाँद तारों सा ! !

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उत्सव

3 नवम्बर 2016
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चुकी चहल पहल खिलखिलाहटें थमीं, गुदगुदी यादों ने भरे नैनों में नमी, रुँधे गले विदाई, कंपित कपोल आर्द्र ! उत्सव उत्तरार्ध ! !

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भोर का साहित्य

17 सितम्बर 2017
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कहने को तो आजकल सब हैं लिखे पढे .'भोर का साहित्य पढते सोच में पडे .............. हर खबर का रंग काला काँपती कांठी में ज्वाला ,रेप, हत्या ,लूट, हरण ,कीर्तिमान गढे ! राकछसी तक शर्मशारी ,कुकृत्यों की महामारी ,देख हतप्रभ,जानवर भी ,काठ से ख

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वक्त की स्याही

18 सितम्बर 2017
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दौर-ए-जुमला लेके आया इक अजब राही ,उसके जलवों को लिखेगी वक्त की स्याही । लोगों ने सर पे बिठाया मान फरिश्ता लूट ली सम्मोहनी से उसने वाहवाही । भाषणों, उद्बोधनों, संम्बोधनों के साथ ,दूर की बेरोजगारी और मँहगाई । कोसते रहते थे जिसको चंद दिन पहले, हर कदम महिमा उसी '

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नसीबन की रोटी

20 सितम्बर 2017
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गली में उसी घर धमाका हुआ ,कई रोज से जिसमें फाँका हुआ । जमाने को आतिश का धोखा हुआ ,हकीकत सुनी तो सनाका हुआ । वो मासूमों के पेट की आग थी ,उसी की तपिश का तमाशा हुआ । नसीबन' की रोटी दबी गिद्ध पांव ,छुडाई तो इज्जत का टांका हुआ । वो खुद्दारी की आग में जल

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