गली में उसी घर धमाका हुआ ,
कई रोज से जिसमें फाँका हुआ ।
जमाने को आतिश का धोखा हुआ ,
हकीकत सुनी तो सनाका हुआ ।
वो मासूमों के पेट की आग थी ,
उसी की तपिश का तमाशा हुआ ।
नसीबन' की रोटी दबी गिद्ध पांव ,
छुडाई तो इज्जत का टांका हुआ ।
वो खुद्दारी की आग में जल गई ,
कलेजा फटा तो फटाका हुआ ।
सियासत की चादर को लाशों पे डाल ,
वो सब पूँछते हैं ,कहां क्या हुआ ?
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