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वतन के सपूत(नाटक)प्रथम अंक "हमारा देश"पुस्तक

28 जून 2016

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featured image(शाम का समय था लोग अपने-अपने घर में बैठे बातें कर रहे थे कि विक्रम मुखिया जी के नाती इस समय अपने गांव और हम सभी का नाम देश भर में रोशन कर रहा है उन्होंने देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये |यही बातें करते-करते सारा गांव सो गया लेकिन मुखिया के परिवार वाले जैसे के तैसे बातें कर रहें हैं ) विक्रम -(अपनी बहू से )हमें बड़ी खुशी है कि हमारे दोनों नाती हमारा नाम रोशन कर रहें हैं महबूब इस समय कश्मीर बार्डर पर बड़ी वीरता से लड़ रहा है सौरभ ट्रेनिंग कर रहा है काश उनके पिताजी जिन्दा होते तो कितना खुश होते |महबूब की माँ -हाँ सच में (तभी फोन की घण्टी बजती है महबूब की माँ फोन उठाती हैं) महबूब की माँ -हेलो ! बेटा कैसे हो |महबूब -ठीक हूँ माँ |भाई की ट्रेनिंग अच्छी चल रही है |माँ -हाँ बेटा | और अगले अंक में |
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इसे पढ़े,लाइक करें,शेयर करें,कमेंट करें | रचनाकार अवनीश कुमार मिश्रा
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वतन के सपूत(नाटक) प्रथम् अंक "हमारा देश"पुस्तक

13 जून 2016
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(शाम का समय था लोग अपने-अपने घरों में बैठे बातें कर रहें हैं कि हमारे मुखिया के दोनों पोते इस समय अपने गांव और देश का नाम कर रहें हैं उन्होंने देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए यही बाते करते-करते सारा गांव सो गया |लेकिन मुखिया के परिवार वाले जैसे के तैसे बातें कर रहें हैं )विक्रम-(अपनी बहू से) हमे

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वतन के सपूत(नाटक)प्रथम अंक "हमारा देश"पुस्तक

28 जून 2016
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(शाम का समय था लोग अपने-अपने घर में बैठे बातें कर रहे थे कि विक्रम मुखिया जी के नाती इस समय अपने गांव और हम सभी का नाम देश भर में रोशन कर रहा है उन्होंने देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये |यही बातें करते-करते सारा गांव सो गया लेकिन मुखिया के परिवार वाले जैसे के तैसे बातें कर रहें हैं ) विक्रम -(अप

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