वीरों का कैसा हो बसंत, कभी किसी ने बतलाया था।
पर ऐसा भी बसंत क्या कभी सामने आया था?
फूली सरसों मुरझाई है, मौन हुआ हिमाचल है।
धरा-व्योम सब पूछ रहे, ये कैसी हलचल है?
माँ भारती हुई आतंकित, कुत्सित कुटिल प्रहारो से।
स्वर्ग भूमि है नर्क बनी अब, विस्फोटों से अंगारों से।।
युद्ध भूमि में नहीं थे वे, जब मौत सामने आई थी।
शत्रु से बिन दो-दो हाथ किए, वीर शहादत पाई थी।।
माँ भारती की करूण वेदना, अब तो सही न जाती हैं।
इन असमय बलिदानों से तो स्वयं मौत भी थर्राती हैं।।
पीली सरसों रक्त हो चुकी, जवाब माँगती है हमसे।
खुद की रक्षा तुम ना करोगे तो क्या कोई आयेगा नभ से?