पहले आँगन में रहता था, अब खिड़की पे आता है।
मुस्का के अपना उजला मुखड़ा कुछ यूँ दिखलाता है।
देख के उसको खुश होती, मैं हौले से मुस्काती हूँ।
झटपट सीढ़ी चढ़कर छत पर मैं आ जाती हूँ।
प्यारी प्यारी बातें करता, कितना मुझे हँसाता है।
परेशानी में देख मुझे वह अच्छे से समझाता है।।
अपने मन की सारी दुविधा मैं उससे साझा करती हूँ।
पास बैठ कर उसके, मैं खुश हो जाया करती हूँ।
मेरी बूद्धू बातें सुनकर भी वह सदा यूँ ही मुस्काता है।
जब मैं हो जाऊँ गुस्सा, आ पास मेरे फुसलाता है।।
मेरी बकझक को भी वह ऐसे सुनता रहता है,
उन बातों से भी वह ना जाने क्या क्या गुनता है?
कितना भी बोलूँ मैं उससे, इक बार भी ना उबकाता है।
सारी रातें, करते बातें, ना जाने कब दिन आ जाता है?
जब पास नहीं होता तो बीती बातें सोचा करती हूँ।
कभी-कभी सपनों में भी मैं उसको देखा करती हूँ।
बचपन का वह दोस्त मेरा, सबके घर में आता है।
वह कोई और नहीं, सबका चन्दा मामा कहलाता है।।