मित्र हो तो असहमति को रखने में संतुलन बरतना ही होगा
विजय गौड़ हमेशा इस पसोपेश में रहता हूं कि मन की बातों को कह दूं यानहीं। संकट है कि कहने का वह सलीका कहां से लाऊं जो शालीन बनाये रखे। फिर भी कोशिशमें तो रहता ही हूं कि मेरे भीतर का मनुष्य, जो वैसे ही वाचाल है, और वाचाल न नजरआये। यूं कहने का साहस तो अब भी नहीं जुटा पा रहा हूं। बस इतना जाने कि जो कु