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वियोग-श्रंगार

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पता नहीं तुम कैसे जीते l मैंने तो  धरती को  नापा l और गगन को भी हैं भांपा ll     निसि-बासर जाग्रत हो करके l     सुरभित कलियों को खो करके ll           तुमको देखा तुम पहले थे l                  बीत गए

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