आबादी बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है| आबादी के विस्तार होने से शहरीकरण भी तेजी से होता जा रहा है | इस बढ़ती आपा धापी में किसी के पास दूसरे के लिए समय नहीं है| संयुक्त परिवार अब एकल परिवारों में विभक्त होने लगे हैं| इस का असर आमतौर पर शहरों और अर्द्ध शहरों पर देखने को मिला है| जहाँ वृद्ध आश्रमों की संख्या में वृद्धि हुई है| मैं जहाँ आज पचास हजार के आबादी वाले शहर में रहता हूँ | वहां अब तक चार वृद्ध आश्रम खुलें है |
एक माता पिता अपने बच्चे को अच्छा पढ़ाते लिखाते हैं | बच्चे बेहतर अवसरों की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं | कुछ ऐसे लोग है जिनके बच्चे नहीं होते और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता इसलिए वे अपनी मर्जी से वृद्धाश्रम आ जाते है | आजकल बहुत से बच्चे अपने माता पिता को घर पर नहीं रखना चाहते उनसे छुटकारा पाने के लिये वृद्ध आश्रम में भेजते हैं| ऐसे लोगों को सोचना चाहिए की वे भी कभी वृद्ध होंगे| उनके बच्चे उनके साथ भी ऐसा करें तो कैसा रहेगा|
बढ़ते वृद्धाश्रम एक चिंता का विषय बनता जा रहा है| हालांकि इन वृद्धाश्रम को अब एकल संस्थान व बड़े कॉरपोरेट की मदद मिलने लगी है| जिससे ये अब बहुत साफ सुथरी व आधुनिक दिखने लगे है| कई तरह की गतिविधियां की जाने लगी है| समय समय पर स्वास्थय परिक्षण और मनोरंजन के साधन प्रदान किया जाता है|
चलते चलते एक बात अवश्य कहना चाहुंगा आज तक कभी किसी गरीब को वृद्धाश्रम जाते नहीं देखा| यह सयुंक्त परिवार का ही असर है| जिसमें लोग मिल कर रहते हैं| अगर कोई मनमुटाब होता है तो उसे आपस में बैठ कर सुलझा लेते है | माता पिता एक छायादार वृक्ष के समान होते हैं| जिनकी छाया में बैठ कर उनसे कुछ सीखा जा सकता है|