बिजली की लुका छुपी के खेल और ..
चिलचिल गर्मी से हैरान परेशां हम ..
ताकते पीले लाल गोले को
और झुंझला जाते , छतरी तानते, आगे बढ़ जाते !
पर सर्वव्यापी सूर्यदेव के आगे और कुछ न कर पाते ..!
पर शाम आज , सूरज के सिन्दूरी लाल गोले को देख
एक दफे तो दिल 'पिघल' सा गया ,
सूरज दा के लिए , मन हो गया विकल
रोज़ दोपहरी आग उगलने वाले इस लाल गोले ने
माथे पर पसरी पसीने की बूंदों ने
कर दिया यूँ व्याकुल ...
पर पूछो तो भला क्यूं ?
आओ सुनाती हूँ , किस्सा सूरज और आग के रिश्ते का !
तस्वीर खींचते वक़्त तो बड़ा लाड़ आया उसके गोल मटोल होने पे ,
बाल हनुमान का भी ख्याल हो आया ,
लगा भर लूँ , हथेली में और
बस ,अहा ...पर बोलो भला ...
सूरज की तपिश को मैं एक अदनी सी लड़की कैसे कैद करूँ !
दिल मेरा पिघला क्यूँ , ये तो बता दूं !
हाँ, तो वो ऐसे कि ,
सूरज दादा ने सारे जहां की गर्मी समेटी है खुद में
पर उन के जलने की तक़लीफ़ का क्या !
वो रिश्ता जो आग और उनके अटूट साथ का है ,
जलते पतंगे की तरह जलते सूरज और
..उसकी संगिनी आग का क्या !
रिश्ते कुछ ऐसे भी तो होते हैं न ,
जिनकी किस्मत सागर और तरिणी की जैसी कहाँ..
उनके ,जिनके शीतल प्रेम के मिलन में ,
तमाम प्यार की कहानियों की मिसालें जा मिलें !
यहाँ सिर्फ सारी कुदरत की ज़िम्मेदारियों का बोझ है
प्रकृति चक्र की फ़िक्र है , याद है वो कहानी
जब सूरज दादा के विलुप्त होने से सब थम गया था ...
और इसीलिए सूरज दा और उनकी साथी जलते , तड़पते हैं ,
मगर साथ हैं .
प्रेम शीतल हो , ज़रूरी तो नही ,
मुक़म्मल हो ,शायद ये भी नही
पर तपिश हर प्रेम की नियति है , ज़रूर !
प्रेम की अंतहीन इसी नियति के साक्षी हैं
सूरज दादा और उनकी साथी.