ऐ हमदम...✒️मन के मनके, मन के सारे, राज गगन सा खोल रहे हैंअंधकार के आच्छादन में, छिप जाने से क्या हमदम..?शोणित रवि की प्रखर लालिमानभ-वलयों पर तैर रही है,प्रातःकालिक छवि दुर्लभ हैशकल चाँद की, गैर नहीं है।किंतु, चंद ये अर्थ चंद को, स्वतः निरूपित करने होंगेश्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ ह
लहरों जैसे बह जाना ✒️मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जानाबहते - बहते अनुरागरहित, रत्नाकर में रह जाना।बड़े पराये लगते हैंस्पर्श अँधेरी रातों मेंघुटनयुक्त आभासित होलहराती सी बातों मेंजब तरंग की बलखातीशोभित, शील उमंगों कोक्रूर किनारे छूते हैंकोमल, श्वेत तमंगों कोबंद करो अब और दिखावे, तटबं
अभी तो सूरज उगा है डॉ शोभा भारद्वाज ‘न्यूज नेशन चैनल’ के लिये दीपक चौरसिया जीनें मोदी जी का 10 मई को इंटरव्यू लिया पांचवें चरण के चुनाव हो चुके थे केवलदो चरण बाकी थे |इंटरव्यू में विभिन्नविषयों पर मोदी जी से प्रश्न पूछे गये उन्होंने अपने द्वारा लिखित कविता की कुछपंक्तियाँ भी सुनाई विषय ‘अभी तो सू
हर सुबह जो सबसे पहले सबको जगआने आता और फिर चिडिओ को नित नवीन अवसर दे जाता दे जाता वो सबको नए संकल्प नए सपने नित और दे जाता वो नित नई उर्जा वो उनको करने की पूरा !
“कुंडलिया”उगते सूरज की तरह दे प्रकाश हर ग्रंथ। हो कोई भी सभ्यता सबके सुंदर पंथ॥ सबके सुंदर पंथ संत सब एक समाना। मानव ममता एक नेक भर लिया खजाना॥ कह गौतम कविराय हाय रे हम क्यों भुगते। कहाँ गई कचनार कहाँ अब मृदु फल उगते॥महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिएजिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिएरोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरहअब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिएअब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्माये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिएफूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गयाजीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिएछिनता हो जब
Baharon Phool Barsao Lyrics of Suraj (1966) is penned by Hasrat Jaipuri, it's composed by Shankar and Jaikishan and sung by Mohammad Rafi.सूरज (Suraj )बहारों फूल बरसाओ (Baharon Phool Barsao ) की लिरिक्स (Lyrics Of Baharon Phool Barsao )बहारों फूल बरसाओमेरा मेहबूब आया हैमेरा मेहबूब आया है क्ष (२)ह
'सूरज' 1 9 66 की हिंदी फिल्म है जिसमें प्रमुख भूमिकाओं में व्याजयंतीमाला, राजेंद्र कुमार, अजीत, मुमताज और जॉनी वाकर हैं। हमारे पास एक गीत गीत और सूरज का एक वीडियो गीत है। शंकर और जयकिशन ने अपना संगीत बना लिया है। मोहम्मद रफी ने इन गीतों को गाया है जबकि हसरत जयपुरी ने अपने गीत लिखे हैं।इस फिल्म के गा
बिजली की लुका छुपी के खेल और ..चिलचिल गर्मी से हैरान परेशां हम ..ताकते पीले लाल गोले को और झुंझला जाते , छतरी तानते, आगे बढ़ जाते !पर सर्वव्यापी सूर्यदेव के आगे और कुछ न कर पाते ..!पर शाम आज ,सूरज के सिन्दूरी लाल गोले को देख एक दफे तो दिल 'पिघल' सा गया , सूरज दा के लिए , मन हो गया विकल रोज़ दोपहरी आग