shabd-logo

शहर पुराना सा .

16 अगस्त 2016

211 बार देखा गया 211


 

अंग्रेज़ीदा लोगों का मौफुसिल टाउन ,
और यादों का शहर पुराना सा .
कुछ अधूरी नींद का जागा,
कुछ ऊंघता कुनमुनाता सा
शहर मेरा अपना कुछ पुराना सा .
हथेलियों के बीच से गुज़रते
फिसलते रेत के झरने सा .

 

कुछ लोग पुराने से ,
कुछ छींटे ताज़ी बूंदों के
कुछ मंज़र अजूबे से
और एक ठिठकती ताकती उत्सुक सी सुबह .

 

सरसरी सवालिया निगाहों की बातें
और कुछ अचकचाती सी ज़बान
कुछ उड़ते खामोश परिंदे
जो ग़ुमशुदा हो जाते यकायक ,
हो जाते तब्दील ,
बादलों के मखमली लिबास में लिपटे
सफ़ेद रुई के पुलिंदे में,

 

शहर जो मसरूफ़ है
अपनी ही बेकारियों के जश्न में .
शहर जो ठिठुरता है , ठन्डे रिश्तों से
और गर्म शॉल सा ओढ़ा लेता है
अपनी दरियादिली की मिसालों से
तो कहीं जलता है आग बनके
तेज़ी से गायब होते और
सरसर बढ़ते नए ज़माने के नए रंगों की ओर

 

खुशबू धनक की औ
सौंधी गीली मिटटी के जैसे गढ़ते
बनते बिगड़ते और
नित नए आकार में ढलते
मेरे शहर की गलियों की नुक्कड़ों पर
अब भी वही यादें पसरती हैं
क्यूंकि मॉफुसिल याने कस्बे की
खनक उसकी अनगिनत कहानियों में है
और कहानियाँ लिखती हैं सभ्यताएं और
शहर पुराने से
जो खड़े हैं नए सुरीले स्वप्निल संसार के दरवाज़े पर
बन एक चंचल उत्सुक बच्चे से .

 

स्पर्श की अन्य किताबें

1

सफ़र और हमसफ़र : एक अनुभव

16 अगस्त 2016
0
2
1

 अकसर अकेली सफ़र करतीलड़कियों की माँ को चिंताएं सताया करती हैं और खासकर ट्रेनों में . मेरी माँ केहिदयातानुसार दिल्ली से इटारसी की पूरे दिन की यात्रा वाली ट्रेन की टिकट कटवाईमैंने स्लीपर क्लास में . पर साथ में एक परिवार हैबताने पर निश्चिन्त सी हो गयीं थोड़ी .फिर भी इंस्ट्रक्शन मैन्युअल थमा ही दीउन्होंने

2

' सशक्तिकरण,सत्ता,और औरत '

16 अगस्त 2016
0
0
0

 14 साल की और 21 साल की मेरी दो बहनें आई पीएस और आई ए एस बनना चाहती हैं . सुनकर ही अच्छा लगेगा .लडकियां जब सपने देखती हैं और उन्हें पूरा करने को खुद की और दुनिया की कमज़ोरियों से जीतती हैं तो लगता है अच्छा .बेहतर और सुखद. खासकर राजनीति ,सत्ता और प्रशासन के गलियारे और औरतें .वहां जहाँ औरतें फिलहाल ग्र

3

ताकता बचपन .

16 अगस्त 2016
0
2
1

अब वो नमी नहीं रही इन आँखों में शायद दिल की कराह अब,रिसती नही इनके ज़रिये या कि सूख गए छोड़पीछे अपने  नमक और खूनक्यूँ कि अब कलियों बेतहाशा रौंदी जा रही हैं क्यूंकि फूल हमारे जो कल दे इसी बगिया को खुशबू अपनी करते गुलज़ार ,वो हो रहे हैं तार तार क्यूंकि हम सिर्फ गन्दी? और बेहद नीच एक सोच के तले दफ़न हुए जा

4

व्यथा ,'सूरज' होने की .

16 अगस्त 2016
0
1
0

बिजली की लुका छुपी के खेल और ..चिलचिल गर्मी से हैरान परेशां हम ..ताकते पीले लाल गोले को और झुंझला जाते , छतरी तानते, आगे बढ़ जाते !पर सर्वव्यापी सूर्यदेव के आगे और कुछ न कर पाते ..!पर शाम आज ,सूरज के सिन्दूरी लाल गोले को देख एक दफे तो दिल 'पिघल' सा गया , सूरज दा के लिए , मन हो गया विकल रोज़ दोपहरी आग

5

शहर पुराना सा .

16 अगस्त 2016
0
2
0

 अंग्रेज़ीदा लोगों का मौफुसिल टाउन ,और यादों का शहर पुराना सा .कुछ अधूरी नींद का जागा,कुछ ऊंघता कुनमुनाता साशहर मेरा अपना कुछ पुराना सा .हथेलियों के बीच से गुज़रतेफिसलते रेत के झरने सा . कुछ लोग पुराने से ,कुछ छींटे ताज़ी बूंदों केकुछ मंज़र अजूबे सेऔर एक ठिठकती ताकती उत्सुक सी सुबह . सरसरी सवालिया निगाह

6

दो पत्ती का श्रमनाद !

16 अगस्त 2016
0
1
2

 पसीने से अमोल मोती देखे हैं कहीं ?कल देखा उन मोतियों को मैंनेबेज़ार ढुलकते लुढ़कतेमुन्नार की चाय की चुस्कियों का स्वादऔर इन नमकीन जज़्बातों का स्वादक्या कहा ....बकवास करती हूँ मैं !कोई तुलना है इनकी ! सड़कों पर अपने इन मोतियों की कीमतमेहनतकशी की इज़्ज़त ही तो मांगी है इन्होंनेसखियों की गोद में एक झपकी ले

7

बनैली बौराई तुम ?

16 अगस्त 2016
0
0
1

  तुम कितनी शांत हो गयी हो अब ,बीरान सी भी .वो बावली बौराई सरफिरीलड़की कहाँ छुपी है रे ? जानती हो , कितनी गहरी अँधेरी खाइयों मेंधकेल दी जाती सी महसूसती हूँ खुद कोजब तुम्हारे उस रूप को करती हूँ याद . क्यों बिगड़ती हो यूँ ?जानती हो न ,तु

8

तर्क-वितर्क और सत्य की खोज .

16 अगस्त 2016
0
3
0

 किसी भी घटना के कई पक्ष और पहलू होते हैं .हर घटना को अलग अलग चश्मों से गहरी या सतही पड़ताल के ज़रिये अलग अलग निष्कर्षों पर पहुंचा जा सकता है . निष्कर्ष वही होते हैं जो रायों में परिवर्तित हो जाते हैं और रायें पीढ़ी दर पीढ़ी , समाज की हर ईकाई के माध्यम से संस्थागत हो जाती हैं . और इस तरह वे अमूमन संस्कृ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए