"कुंडलिया"मौसम होता प्रौढ़ है कर लेता पहचानचलती पथ पर सायकल डगर कहाँ अनजानडगर कहां अनजान बचपनी साथी राहेंसंग मुलायम भाव लौह से लड़ती चाहेंकह गौतम कविराय प्यार तो जीवन सौ समचक्र चले दिन रात धुरी पर चलता मौसम।।महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया"मन में आग धधक रही जल जाता वन बागगर्मी से राहत कहाँ तरह तरह चित रागतरह तरह चित राग विराग हुई खग मैनाचित कत मिले विराम आराम नहिं जिय नैनाकह गौतम कविराय प्राण पति बसता धन मेंमूरख चेत निदान विधान बना नहिं मन में।।महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया" बिंदी पाई पागड़ी, स्वर हिंदी अभिमान क ख से ज्ञ तक वर्ण सभी, गुरुवर की पहचान गुरुवर की पहचान, चंद्र आकार चांदनी गुरु पूनम दिनमान, दिव्यता अंकुर अवनी गौतम गर्वित ज्ञान, नम्रता लाए हिंदी नमन करूँ गुरुपाद, सुशोभित माथे बिंदी।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया" कुदरत ने सब कुछ दिया, आम पाम अरु जाम हम मानव ने रख दिया, अमृत फल का दाम अमृत फल का दाम, नाम जस गुन रखते थे औषधि के भंडार, दरख़्त विपुल फलते थे गौतम गुच्छे देख, जामुनी पोषक बरकत हाथ लगे रसधार, पिलाए मधुरस कुदरत।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया" गैया मेरी काबरी, मुझे पिलाये दूध गर्मी बेपरवाह है, हौका पानी धूध् हौका पानी धूध्, खुले आकाश विचरती मैली हुई मुराद, सु मांस मोह में मरती दे गौतम नहलाय, अलौकिक है गौ मैया सगरो तीरथ धाम, वसे सुख मूरत गैया।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया" नरमुंडों के बीच में, लिए हाथ कंकाल घूम रही तस्वीर है, मानव मृत्यु अकाल मानव मृत्यु अकाल, काल मानव के घर में मुंड मुंड गलमाल, भाल चिंतित है डर में कह गौतम कविराय, सुनो रे पापी झुंडों कुंठित चिंतन हाय, आत्मा बिन नरमुंडों।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"कुंडलिया" करती रही पिया पलक, देहरी इंतजार पी तेरे आगोश में, खुशियों की रसधार खुशियों की रसधार, मिलेगी मुझको जन्नत किया निकाह कबूल, मांगती आई मन्नत गौतम गरज गुहार, बलम मैं तुमसे डरती राखहु दूर तलाक, अरज पिय प्रतिपल करती।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
1- "कुंडलिया" दिखता जो होता कहाँ, दृश्य धुंध नहि साँच, भाई बेटा द्वय सगे, किसको आए आँच किसको आए आँच, कौमुदी देखे जनता तरह तरह के दाँव, लगाते जो बन पड़ता गौतम खेले खेल, सियासत में सब चलता साथी है बेताब, दृश्य नहि मन का दिखता।। 2- "कुंडलिया" बदली कब दीवार है, नए कल