1- "कुंडलिया"
दिखता जो होता कहाँ, दृश्य धुंध नहि साँच,
भाई बेटा द्वय सगे, किसको आए आँच
किसको आए आँच, कौमुदी देखे जनता
तरह तरह के दाँव, लगाते जो बन पड़ता
गौतम खेल े खेल, सियासत में सब चलता
साथी है बेताब, दृश्य नहि मन का दिखता।।
2- "कुंडलिया"
बदली कब दीवार है, नए कलेंडर हार
पन्ने पन्ने पर लिखे, नए नए त्यौहार
नए नए त्योहार, सोलवां साल निराला
निकले तगड़े नोट, वर्ष सत्रह अब आला
गौतम हाथों हाथ, खिलाएं सबको कदली
खुशियाँ झूमे साल, मुबारक अदला बदली।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी