"कुंडलिया"
नरमुंडों के बीच में, लिए हाथ कंकाल
घूम रही तस्वीर है, मानव मृत्यु अकाल
मानव मृत्यु अकाल, काल मानव के घर में
मुंड मुंड गलमाल, भाल चिंतित है डर में
कह गौतम कविराय, सुनो रे पापी झुंडों
कुंठित चिंतन हाय, आत्मा बिन नरमुंडों।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी