सबला नारी
देख कर आज की पीढ़ी को,मन में आता है अक्सर।ये नारी अबला नहीं...सबला हैं,स्वछंद,उन्मुक्त, उत्साहित,जैसे लगे हों पर।कुछ हद तक बेड़ियां खुली हैं इनकी,करने को सब कुछ हैं ठानी।क्या समाज ने भी उसे स्वीकार करने को मानी।।'सबला'तो हमेशा से है नारीरही है हर युग में सब पे भारी,सिर्फ डर था नर को ,कीछीन ना जाये उनक