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सबला नारी

5 जून 2017

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देख कर आज की पीढ़ी को, मन में आता है अक्सर। ये नारी अबला नहीं...सबला हैं, स्वछंद,उन्मुक्त, उत्साहित,जैसे लगे हों पर। कुछ हद तक बेड़ियां खुली हैं इनकी, करने को सब कुछ हैं ठानी। क्या समाज ने भी उसे स्वीकार करने को मानी।। 'सबला'तो हमेशा से है नारी रही है हर युग में सब पे भारी, सिर्फ डर था नर को ,की छीन ना जाये उनकी ठेकेदारी। स्त्री तो स्त्री है,अपने आप में संपुर्ण है, जानती है वो अपने से पहले साथ वाले का पेट भरना,सबको साथ ले कर चलना, हर गुण से वो परिपूर्ण है। स्त्री सम्मान को मानते पुरुष अपना अपमान, जैसे छीन जाएगा उनका स्वामित्व, नहीं रहेगी उनकी कोई अस्तित्व। 'अर्धनारीश्वर' बनने में भी ना समझते अपना मान। बस उन्हें 'राम' बनने का अरमान, कर सकें हर काल में 'सीता' का अपमान।। जब जब रखना चाही,पुरुषों का मान सहना पड़ा तिरिस्कार पूर्ण मर्दन। रह जायेगी क्या ? हर काल में 'नारी' अबला कभी ना बन पाएगी वो सबला!!

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प्यार के तलाश में भटकती मैं, अभी तुमसे आग्रह किया ही था की जाओ जाओ रोने मत आओ ,कह कर दुत्कार दिया।तुमसे ही मिले ये आँसू और कहते हो हर वक्त रोते रहती होऐसा तो कभी न हुआ कि हंसाने के लिए थोड़ा दुलार दिया।। सुनाते हो सारी कमियाँ मेरी हर बार,जैसे मैं हूँ गलतियों की खानकभी तो तुम्हारी नजरों ने दिया होगा म

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जीवन की नैया

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अश्क न ढलके नयनों सेलहरें आये कितनी  मन के समंदर मेंपाया है  हमने जिया ऐसाढूंढते रह जाओगे मेरे जैसा।कहते हैं कोमल हृदया ,कोमलांगी,अर्धांगनी सिर्फ एक कीपर बोझ तो उठाना हैं ,हर बेबसी कीतुम कहाँ से लाओगे दिल ऐसा ढूंढते रह जाओगे मेरे जैसागम की पोटली छिपा हृदय तल मेंखुशियों का चादर बिछाती,निराश नयनों के

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खुदगर्ज वर्षा

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