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रामधारी सिंह दिनकर

24 अप्रैल 2017

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आज रामधारी सिंह दिनकर के पुण्यतिथि के अवसर पर याद कर ले उनके कुछ ओज पूर्ण भावों को। 'समर शेष है,नही पाप का भागी केवल व्य्याधि। जो तटस्थ है,समय लिखेगा उसका भी अपराध। ' दिनकर का काव्य कठोरता और कोमलता दोनों से भरपूर है।एक ओर जहां ललकार है तो दुसरी ओर प्रेम की पुकार भी है।क्रांतिकारी विचार और रुमानियत से लबालब है। दिनकर जिंदगी की विराटता की बात करते हैं। उनकी कही बातें आज भी उतनी ही समसामयिक और प्रासंगिक प्रतित होती हैं। बल्कि सफलता के सूत्र वाक्य हैं। 'मानव जब जोर लगाता है,पत्थर पानी बन जाता है।' या अतिशय रगड़ करे जो कोई,अनल प्रगट चंदन होइ। और यह समजिज चेतना का रूप ले लेती है जब कहते हैं हटो व्योम के मेघ पंथ से,स्वर्ग लूटने हम आते हैं। दूध,दूध व वत्स!तुम्हारा दूध खोजने हम आते हैं।। यूँ तो दिनकर का मूल शब्द राष्ट्रियता का रहा है लेकिन उनकी कविताओं में प्रेम भी संगीत की तरह बहा है ।आज जहां प्रेम सारे बाजार आम हो रहा है।उस प्रेम में उस जमाने मे भी चार चांद लगाने में दिनकर पीछे नहीं रहें हैं। दिनकर के इस रूप की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति 'उर्वशी' में हुआ है। प्रेम के आध्यात्मिक और आलोकिक रूप का दर्शन करवाया है दिनकर ने। 'जिस दिन मांझी आएगा ले चलने को उस पर सखी यह मोहक यौवन देना होगा उसको उपहार सखी। समाज का कोई भी झेत्र दिनकर के कलम से अछूता नही जान पड़ता है।या वो जातीय दंश हो या राजनीतिक उठापटक।इनका इतिहास बोध भी अद्भुत है।उनके समसामयिक विचार आज भी उतने हैं प्रासंगिक हैं और दिशा प्रदान करते हैं।यूँ तो ऐसे विद्वान जन देश, काल के परिधि से काफी ऊपर होते हैं परंतु हम जैसे अबोध उन्हें अपने प्रदेश से जोड़कर हमेशा खुद को गौरवशाली महसूस करते हैं।शत शत नमन ।।

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रेणु

रेणु

पूनम जी आपका बहुत धन्यवाद -- साहित्य के शिखर पुरुष और राष्ट्रकवि दिनकर जी का स्मरण करवाने के लिए | दिनकर जी ने प्रखर स्वर में राष्ट्रीयता हां गौरव गान किया | दिनकर जी पुण्य स्मृति को कोटि - कोटि नमन ! !

24 अप्रैल 2017

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वफ़ा

16 अप्रैल 2017
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वफ़ा करने वालों को ही वेवफाई मिलती है।बेवफा' तो और के 'वफ़ा' का मजे ले रहा होता है।।

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पिया

17 अप्रैल 2017
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आ पिया, तुम्हें नयनन में बंद कर लूं।ना मैं देखूँ गैर को,ना तोहे देखन दूं।।

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पतझड़

19 अप्रैल 2017
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पतझड़ के बाद, हाल कोई पूछे उन दरख्तों से।फिर से पनपने की , उम्मीद क्या वो रखते हैं।।

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चाँद

21 अप्रैल 2017
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चाँद भी रोज कट कट कर मरता,फिर जुड़ जुड़ कर जीता है।सारे जहां को क्या पड़ी ,वो तो सिर्फ चांदनी को पीता है।।

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रामधारी सिंह दिनकर

24 अप्रैल 2017
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आज रामधारी सिंह दिनकर के पुण्यतिथि के अवसर पर याद कर ले उनके कुछ ओज पूर्ण भावों को।'समर शेष है,नही पाप का भागी केवल व्य्याधि।जो तटस्थ है,समय लिखेगा उसका भी अपराध। 'दिनकर का काव्य कठोरता और कोमलता दोनों से भरपूर है।एक ओर जहां ललकार है तो दुसरी ओर प्रेम की पुकार भी है।क्रांतिकारी विचार और रुमानियत से

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दर्द

10 मई 2017
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परत दर परत धूल झाड़ते रहे,कर ना पाए साफ।कट गई जिंदगी साफ करते करते, ना मिला इंसाफ।।यहाँ गई,वहाँ गई मिला गर्द ही गर्द,ना जाने कब वो समय आएगा कोई समझेगा दिल का दर्द।।

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मन्नत

13 मई 2017
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हर पल निहारती रही तुम्हेंऔर यूँ ही कह दिया ,कभी तुमपे ध्यान ना दियाअरे कभी देखो मेरी तरफ ; तब न जानोक्या होती है तड़प।।ढूंढती रही वो प्यार भरी नजरें तुम्हारी,अक्सर दिख जाया करती जो तुम्हारे चेहरे पे,किसी गैर के लिए।।कई बार बड़ी आरजू भी की।जानम, तड़प है सिर्फ उन प्यारी नजरों की,हटते नहीं कभी जो मेरे चेह

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सच्चा प्यार

25 मई 2017
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प्यार के तलाश में भटकती मैं, अभी तुमसे आग्रह किया ही था की जाओ जाओ रोने मत आओ ,कह कर दुत्कार दिया।तुमसे ही मिले ये आँसू और कहते हो हर वक्त रोते रहती होऐसा तो कभी न हुआ कि हंसाने के लिए थोड़ा दुलार दिया।। सुनाते हो सारी कमियाँ मेरी हर बार,जैसे मैं हूँ गलतियों की खानकभी तो तुम्हारी नजरों ने दिया होगा म

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जीवन की नैया

1 जून 2017
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आओ चलें कही दूर, जहां ना हो कोई पीरबस मैं और तुमबांट ले हर खुशी और गम। दुनिया तो किसी की नहीं जैसे भी रहो सही किसी को क्या लेना हमें तो बस हमदम तेरा साथ पाना। अश्कों के तेल में कजरों की बाती बना, 'दिया' जलाना। आस लगाती ये

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सबला नारी

5 जून 2017
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देख कर आज की पीढ़ी को,मन में आता है अक्सर।ये नारी अबला नहीं...सबला हैं,स्वछंद,उन्मुक्त, उत्साहित,जैसे लगे हों पर।कुछ हद तक बेड़ियां खुली हैं इनकी,करने को सब कुछ हैं ठानी।क्या समाज ने भी उसे स्वीकार करने को मानी।।'सबला'तो हमेशा से है नारीरही है हर युग में सब पे भारी,सिर्फ डर था नर को ,कीछीन ना जाये उनक

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बहाना

10 जून 2017
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आपने फुरसत में आने का बहाना जो शुरू किया , ख्वाबों ने भी नींद का आशियाना छोड़ दिया।।

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ढूंढते रह जाओगे मेरे जैसा

14 जून 2017
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अश्क न ढलके नयनों सेलहरें आये कितनी  मन के समंदर मेंपाया है  हमने जिया ऐसाढूंढते रह जाओगे मेरे जैसा।कहते हैं कोमल हृदया ,कोमलांगी,अर्धांगनी सिर्फ एक कीपर बोझ तो उठाना हैं ,हर बेबसी कीतुम कहाँ से लाओगे दिल ऐसा ढूंढते रह जाओगे मेरे जैसागम की पोटली छिपा हृदय तल मेंखुशियों का चादर बिछाती,निराश नयनों के

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खुदगर्ज वर्षा

20 जून 2017
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रात भर वर्षा रानी ने की है अपनी मनमानीनाच नाच कर की है धरती को पानी पानी।बडी मनमौजी,अलमस्त ,खुदगर्ज ये वर्षा,जब धरती जल रही थी तो कहां थी,माथे पे सूरज तप रहा था तो कहां थीमन करे तो क्रूर बने,  मन करे तो हर्षा।बड़ी मनमौजी ,खुदगर्ज ये वर्षा।।धरती के तपन को बुझाने चली होया करने अपनी मनमानी चली हो,जब होत

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