कैसी हो।हम अच्छे हैं और तुम बताओ सखी क्या हाल चाल है ।अब तो अपनी मुलाकात के दिन थोड़े ही रह गये हैं । क्यों ना जी भर कर बातें करें विभिन्न विषयों पर चर्चा करें।
तमाम दंगों की तरह ही गुजरात दंगों को लेकर सबसे बड़ा प्रश्न यही था ये स्वतः स्फूर्त थे या फिर एक लंबे षडयंत्र का हिस्सा, जिस मामले में ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय की बनाई स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम कह चुकी है कि दंगों के पीछे साज़िश के साक्ष्य नहीं मिले और इस बात को न्यायालय ने मान भी लिया है. माने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दंगों के मामले में क्लीन चिट मिल गई है. ऐसे में बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री आती है, इंडिया - द मोदी क्वेश्चन नाम से. दो एपिसोड वाली इस डॉक्यूमेंट्री का दावा किया गया है कि इसमें एक नई नज़र से दंगों को देखा गया है. डॉक्यूमेंट्री में इल्ज़ाम है कि 2002 में गुजरात में जो कुछ हुआ, उसमें एथनिक क्लेंज़िंग के सारे निशान थे. और ज़िम्मेदारी तत्कालीन मुख्यमंत्री थे. हवाला दिया गया है ब्रिटिश सरकार की एक खुफिया रिपोर्ट का. भारत सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन ये देखी भी जा रही है और दिखाई भी जा रही है.
हम और आप इस घटना को कैसे देखें. क्या अदालती फैसलों के बाद भी किसी सत्य के बाहर आने की गुंजाइश रहती है? और क्या जब ऐसे दावों के साथ डॉक्यूमेंट्रीज़ बनती हैं, तो पब्लिशर की पॉलिटिक्स को अनदेखा किया जा सकता है? और सबसे बड़ा सवाल ये, कि क्या सही है, क्या गलत, क्या देखने लायक है और क्या बैन के काबिल, इसका फैसला कैसे होगा और कौन करेगा?
गुजरात दंगों को लेकर कई डॉक्यूमेंट्रीज़ और न्यूज़ रिपोर्ट्स पहले ही बन चुकी हैं. फिर बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री में नया क्या था? खबरों की दुनिया की भाषा में कहें तो पेग क्या था? आइए समझते हैं. टोनी ब्लेयर सरकार में विदेश मंत्री रहे थे जैक स्ट्रॉ. द वायर को दिए एक इंटरव्यू में वो कहते हैं कि दंगों से प्रभावित लोगों के ब्रिटेन में रह रहे रिश्तेदारों ने टोनी ब्लेयर सरकार से गुजरात दंगों की जांच की मांग की थी. इसके बाद ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने एक रिपोर्ट तैयार करवाई. इसी रिपोर्ट का हवाला बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में दिया गया. डॉक्यूमेंट्री में भाजपा नेता स्वपन दासगुप्ता का इंटरव्यू भी शामिल किया गया है.
दो एपिसोड वाली डॉक्यूमेंट्री इंडिया: 'द मोदी क्वेश्चन' का पहला हिस्सा रिलीज़ हुआ तो इसकी कई क्लिप्स सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. लेकिन राजनीतिक हलके में इसका शोर तब तक कम ही सुनाई दिया. फिर आती है 19 जनवरी की तारीख. इस दिन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी कि बीबीसी की ये डॉक्यूमेंट्री भारत में रिलीज़ नहीं हुई है. उन्होंने इसे एक प्रॉपेगैंडा का हिस्सा बताया।
डॉक्यूमेंट्री पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया के आने के बाद से ये मुद्दा कितना बड़ा बनने वाला था इस बात का अंदाजा आपको विपक्ष में बैठी पार्टियों के बयानों से लग जाएगा. इन राजनीतिक बयानबाजियों के बीच डॉक्यूमेंट्री का पहला एपिसोड यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया और उसका लिंक सोशल मीडिया पर शेयर होने लगे. इस पर 21 जनवरी को केंद्र सरकार की तऱफ से बड़ा कदम उठाया गया. और डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के आदेश आ गए. इस दिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार कंचन गुप्ता ने ट्वीट कर बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' के पहले एपिसोड के YouTube वीडियो को ब्लॉक करने के आदेश दिए हैं और साथ ही इन वीडियो के लिंक वाले 50 से ज्यादा ट्वीट्स को ब्लॉक करने के लिए Twitter को आदेश भी जारी किए गए हैं. कंचन गुप्ता ने ये भी बताया कि यूट्यूब को वीडियो को फिर से अपलोड करने पर ब्लॉक करने का निर्देश दिया गया है.