भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है क्योंकि भारत देश में विभिन्न प्रकार के पर्व मनाये जाते है। इसी प्रकार लोहरी का पर्व भी भारत देश में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व को खासतौर से पंजाबी लोग मनाते है लेकिन कुछ अन्य जगहों पर भी लोहरी का त्यौहार बहुत दी धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
लोहरी का त्यौहार पंजाबियों का प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व को बहुत ही धूम-धाम से और नाचते गाते मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष इस त्यौहार को मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है। जब पंजाब में फसल काटी जाती है और नई फसल बोई जाती है इसे किसानो के नया साल भी कहा जाता है और साथ इस लोहड़ी के पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक कथाओं को महत्व दिया जाता है जैसे की – सुंदरी-मुंदरी और डाकू दुल्ला भट्टी की कथा, भगवान श्री कृष्ण और राक्षसी लोहिता की कथा, संत कबीर दास की पत्नी लोई की याद में, आदि।
एक बार की बात है दो अनाथ लड़कियाँ थी। एक लड़की का नाम सुंदरी और दूसरी का नाम मुंदरी था। सुंदरी और मुंदरी का एक चाचा भी था जो उनका विवाह विधिवत ढंग से करने के बजाय एक राजा को भेट स्वरूप देने चाहता है लेकिन उसी समय दुल्ला भट्टी नाम का एक डाकू भी हुआ करता था जो उन अनाथ लड़कियों को राजा को भेट होने से बचा लेता हो और उनके लिए योग्य वर की तलाश करके उनकी शादी पुरे विधिवत ढंग से कराता है और उनका कन्यादान भी स्वयं करता है। कन्यादान के रूप में दुल्ला भट्टी डाकू उनकी झोली में सेर शक्कर डालता है।
लोहरी पर्व मनाने के पीछे अन्य बहुत सी कथाएं प्रचलित है। कुछ लोगो का मानना है कि इस पर्व को संत कबीर दास जी की पत्नी लोई की याद में मनाया जाता है तो इसी प्रकार ऐसा भी कहा जाता है कि इसलिए लोहड़ी मनाई जाती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का वध करने के उद्देश्य से कंश ने लोहिता नाम की एक राक्षसी को भेजा था परन्तु भगवान श्री कृष्ण खेलते-खेलते उस राक्षसी का ही वध कर देते है।
लोहड़ी का पर्व कब और कैसे मनाते है ?
लोहरी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है क्योंकि हर साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है इस प्रकार 13 जनवरी को लोहरी मनायी जाती है। ऐसा माना जाता है की उस समय से दिन छोटे और राते लम्बी होने लगती है। लोहरी के दिन सभी लोग नए नए कपडे पहनते है और खुशी मनाते है।
इस दिन सभी लोग नाचते व गाते है। सभी लोग लोहरी के लिए उपले और लकड़ियाँ एक स्थान पर इकठ्ठा करके उसका ढेर बना लेते है और शाम के समय उनको जला कर उसकी परिक्रमा करते है। सभी माताएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर लोहड़ी की अग्नि की चक्कर लगाती है और अग्नि में मूंगफली, रेवड़ी, मेवे, गज्जक, पॉपकॉर्न आदि की आहुति देते है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी के चक्कर लगाने से बच्चे को किसी की नजर नहीं लगती। किसानों द्वारा अपनी नई फसल का आहुति दी जाती है। प्रसाद के रूप में सभी लोगो में रेवड़ी, पॉपकॉर्न, मूंगफली का मिश्रण में बांटते हैं।