मैं देख रहा था…
बिल्कुल अभी-अभी शुरू हुई थी बारिश
उस गाड़ी के शीशे को चूमती हुई पानी की बूँदें
जिस पर ड्राइव कर रहा था मैं
पत्तियों का भीगा हुआ गीला बदन
किसी धूँधली तस्वीर को बना रहे थे
मुझे मिले थे रास्ते में
मौरू के पेड़ की
पत्तियों में पनाह ढूँढते हुए लोग
उस पेड़ की बाहों में लचकती हुई उनकी आंखें
मैंने देखा था…
तुमको तुम्हारे खेत में काम करते हुए
सफ़ेद रंग की तरह तुम्हारी देह
फूलों की-सी बनावट लिए हुए
अपने ही काम में गुम, खोई हुई
मैंने देखी थी…
सकार्फ के कौने से एक ओर लटकती हुई
तुम्हारे बालों की लट
और उस लट में कंधी-सी करती हुई भीगी हवा
मदहोश करने वाली तुम्हारी आँखें
और आँखों के किनारे से
फिसलती बारिश की बूंदें
मैं देख रहा था…
फूलों से भी नाज़ुक तुम्हारे गाल
कुछ और गुलाबी हुए हैं शर्म से
दाँतों के निशान वाले होंठ जैसे
आपस में लिपटे हुए हों दो फूल गुलाब के
मैं देख रहा था
उस गीली मिट्टी को जो
चूम रही थी तुम्हारे कोमल हाथों को
क्षमा करना उस वक्त मैं सोच रहा था
मैं मिट्टी होता तुम्हारे खेत की काश
मैंने देखा था गले से लटकता हुआ लॉकेट
जो बार-बार तुमको कर रहा था परेशान
कई बार सोचा होगा तुमने कि हटा दूँ इसको
मैं देख रहा था…
अजीब अदा से मुस्कुराती हुई तुम
ज़रा रुक कर, मुझसे बात करती हुई तुम
कदम बढ़ाना चाहता था मैं तुम्हारी ओर अचानक
रुक गया था जाने क्या सोच कर
मैं जब देख रहा था तुम्हें …
गाड़ी का सामने वाला पहिया कब सड़क से बाहर उतर गया
इसका एहसास तक न हुआ मुझे
कभी आना होगा दोबारा
तुम्हारा उस खेत में तो देखना अभी भी
उस पहिए का निशान जयों का त्यों है
अपने काम में मग्न हुई जाती तुम
सामने तुम्हारी अम्मा जो मुझसे कुछ बातें कर रही थी
उन्होंने कुछ अजीब सा रिश्ता जोड़ा था मुझसे उस दिन
धीरे-धीरे उस सड़क पर आगे खिसकता मैं
फिर एक दूसरे से ओझल हुए जाते हमदोनों
मैं देख रहा था तुम्हें गाड़ी के साईड मिरर में मोड़ से निकल जाने तक
मेरे वापस आने पर तुम्हारा मेरी ओर बार-बार देखना भी शायद कुछ..........