मैं देख रहा था
मैं देख रहा था… बिल्कुल अभी-अभी शुरू हुई थी बारिश उस गाड़ी के शीशे को चूमती हुई पानी की बूँदेंजिस पर ड्राइव कर रहा था मैं पत्तियों का भीगा हुआ गीला बदन किसी धूँधली तस्वीर को बना रहे थे मुझे मिले थे रास्ते में मौरू के पेड़ की पत्तियों में पनाह ढूँढते हुए लोगउस पेड़ की बाहों में लचकती हुई उनकी आंखें