पड़ौस के गाँव में रमजान अपनी बीबी परवीन के साथ रहता था जब गाँव में रोजगार का कोई आसरा न रहा और घर में सास बहू की खटपट बढ़ी तो हस्तकला में माहिर रमजान गाँव छोड़कर कस्बे में आ बसा ! शादी के समय रमजान की बीबी खास पढ़ी लिखी तो न थी पर रमजान ने उसको शादी के बाद पढ़ने लिखने को प्रेरित किया और परवीन ने घसीट पीटकर बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ही ली ! क़स्बे में रहमान की बढ़ईगिरी ठीकठाक चल निकली और मियां बीबी अपनी गृहस्थी में रम गए ! अल्लाह के फज़ल से परवीन को चाँद सी खूबसूरत दो बेटियां हुईं बड़ी बेटी की उम्र इन दिनों १६ की है और छोटी बेटी १२ की है ! रमजान और परवीन की जिंदगी में वह समय उलटफेर का कारक बनकर आया जब सूबे की सरकार ने विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए शॉर्टकट अपनाया और संविदा पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गयी ! ये शिक्षा मित्र गाँव के प्रधान की संस्तुति पर गाँव के १२वीं पास युवक और युवती नियुक्त होने थे ! रहमान ने भी प्रधान जी से आरजू मिन्नत करकरा के परवीन को शिक्षा मित्र नियुक्त करा लिया और मोहतरमा परवीन खातून गाँव के प्राइमरी स्कूल में "मैडम" हो गयीं !
गृहस्थी तो क़स्बे में बसा रखी थी और पढ़ाने गाँव में जाना होता था सो मैडम के शौहर ने मैडम की शान के अनुरूप स्कूटी का प्रबंध करा दिया अब मैडम का मानदेय तो था दो हजार रुपया मात्र और स्कूटी का खर्चा ढाई हजार महीने का और ऊपर से मैडम के चेहरे की चमक बनाये रखने का ब्यूटी पार्लर का खर्चा अलग कुल मिलाकर आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया , अंटी तो ढीली रमजान की होनी थी सो खूब हो रही थी और रमजान भी तनिक गिला न करता कारण कि जैसे डॉक्टर की बीबी को पड़ौसने डॉक्टरनी बुलाती हैं ठीक वैसे ही रहमान को यार दोस्त "मास्साब" कहने लगे थे सो गिला तो होना ही न था और वैसे भी कहावत है नाम दरोगा धर दो भले वेतन अठन्नी कर दो कुलमिलाकर रमजान मास्साब शान में भूले बसूला ही चलाते रहे और मैडम सहकर्मी शिक्षामित्र की पर्सनाल्टी पर आशक्त होती गयीं ! नैनों ने कब इशारों इशारों में दिल की हसरतें बयां कर दी और शिक्षामित्रों को एक दूसरे के आगोश में ला दिया किसी को पता ही न चला लेकिन नेह के नैन और इत्र की चोरी भला कब तक छिपते सो स्टाफ में कानाफूसी तेज हो गयी हेडमास्टर ने समझाने की कोशिश की तो आशनाई के रथ पर सवार प्रेमियों ने उसे कायदे से धमका डाला चूँकि शिक्षामित्र अपनी हुड़दंग नेतागिरी के लिए खासे चर्चित हैं सो साठ हजार वेतन पाने वाला हेडमास्टर दो हजार मानदेय वाले शिक्षा मित्रों के मामले में बिलकुल शांत हो गया ! और शिक्षामित्र जोड़े की रंगीनियाँ खुलकर फरुक्खावादी हो गयीं ! सहकर्मी शिक्षामित्र के व्यक्तित्व के आगे अब भला बसूला वाला अँगूठाटेक रमजान कहाँ भाता सो मैडम घर में होकर भी रमजान से कटी कटी रहने लगीं और घर में भी ज्यादातर समय स्मार्टफोन पर बिताकर सुबह जल्दी ही स्कूल जाकर देर शाम घर आने लगीं !
इसी बीच सूबे की सरकार ने वोटों के लालच में सारे मानकों , नियमों और अध्यादेशों को धता बता कर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक का तोहफा दे डाला और शिक्षा मित्र दो हजार के मानदेय से उछलकर ३५ हजार की वेतन को प्राप्त हो गए ! सहायक अध्यापक के पद और वेतन के आगे अब रमजान का बसूला निश्चित रूप से बहुत छोटा पड़ गया था ! प्रेमी जोड़े को प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए अब सारी बाधाएँ पार होती नजर आने लगीं थीं अब दोनों सहायक अध्यापक हो चुके शिक्षामित्र अपनी दुनिया अपनी गृहस्थी बसाना चाह रहे थे और कोई बाधा बची भी थी तो वो थी रमजान और परवीन की शादी जिसे तोडना जरुरी था परवीन ने रमजान से सीधे शब्दों में तलाक माँगते हुए कहा नहीं हो तुम मेरे लायक ,नहीं रहना है तुम्हारे साथ , दे दो मुझे तलाक़, जीने दो मुझे अपनी जिंदगी....... . नेकदिल इंसान था रमजान बहुत प्यार था बीबी से बच्चों में बसती थी उसकी जान , सुनकर हुआ हैरान परेशान बोला मेरी जान , होश में आओ , क्या कहेंगे परिवार और पड़ौसी , क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज और रिश्तेदारों को , बच्चे बड़े हो गए हैं कुछ उनका तो सोचो बड़की हो गयी है सोलह साल की उसे जल्द ही डोली में बिठाना है और तुम्हें अब अपना नया आशियाना सजाना है ? कुछ तो तरस खाओ मोहतरमा , मुझे यूँ रुसवा न करो कुछ तो अल्लाह से डरो ,पर प्रेम की मादक मदिरा में मदहोश परवीन को न कुछ समझ आया और न ही उसने कुछ समझाना ही चाहा ! घर जंग का मैदान बन गया खूब बर्तन बजे खूब तमाशा हुआ पर रमजान के मुंह से तीन बार तो क्या एक बार भी तलाक न निकला और परवीन की मज़बूरी ये कि मजहबी कानून ने उसे तीन तलाक का हक़ अदा नहीं किया वर्ना कब की तीन बार ता ता ता कह कर खिसक ली होती ! बड़े बुजुर्ग बैठे समझाईशो के दौर चले पर कोई फर्क न पड़ा परवीन के वालिद एक दशक पहले ही अल्लाह को प्यारे हो गए थे और परवीन ने अपनी अम्मा को अपने रंग में कायदे से उतार लिया था सो सारी समझाइशें बेकार होनी ही थीं सो होकर रहीं ! मसला जब घर वालों से न सम्हला सो कचहरी के दरवाजे आन खड़ा हुआ , इधर वकील साहब ने मुक़दमें की कमान सम्हाली और उधर देश के उच्चतम न्यायालय ने विचाराधीन शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक नियुक्त किये जाने पर फैसला सुनाते हुए सूबे के शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्ति को गैर क़ानूनी करार दिया और उन्हें सहायक अध्यापक के पद से अपदस्थ कर दिया ! सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रेमी शिक्षामित्र जोड़े पर गाज बनकर गिरा प्रेम का नशा काफूर हो गया प्रेमी शिक्षामित्र की चारपहिया गाड़ी कम्पनी वाले उठा ले गए मोटर साइकिल कर्जदारों ने छीन ली ! अब परवीन में न घर बसाने की तमन्ना बची थी न इश्क की अंगड़ाई अब सम्हालने को कुछ बचा था तो बस वो ही रमजान के बसूले का सहारा .... और इस तरह लौट के बुद्धू घर को आयी .....!!
शब्द संयोजन
अशोक सूर्यवेदी
एडवोकेट
मऊरानीपुर झाँसी