*मै लिखना चाहूं तुम्हे अगर*
मैं लिखना चाहूं तुम्हें अगर
लिख दूं स्याही से हर पन्नों पर
लिखूं मैं सच अगर
झुकाना पड़ेगा तुम्हें अपना सिर
मैं ना चाहती बिखरते हुए देखना
तुम्हारी यादों में बसा अपना बुनियादी घर
मार चुके हो तुम मुझे इतना अंदर तक
कि रूह भी रोई कल देर रात भीतर तक
सपना था टूटा हसीन यादों के महलों का
जिस दिन रखा था तुमने
किसी और की गोद में अपना सिर
मैं लिखना चाहूं तुम्हें अगर
थे हम तुम्हारे पूरे, तुम ही लाए हमें अपने घर
सजाए थे वो सपने जो, वो सोए अब जख्मी दिल पर
चाहत थी तुम्हें पाने कि लगा तुम्हें खोने से डर
लूट गया यादों का वो हसीन महल
लुटा वो बुनियादी घर
मैं लिखना चाहूं तुम्हें अगर
क्या क्या बात लिखूं की तुम सहम जाओगे
हर रात जब तुम देखा करोगे मुझे गर
मेरे शब्दों की चोट को ना भूल पाओगे
मैंने तो बस लिखना सीखा है
पर आज भी लगता है तुम्हें खोने से डर
हाँ प्रेम में ही थे तुम्हारे हम
इसलिए यादों का जब टूटा ये महल
टूट गए सपने बिखर गया मेरा बुनियादी घर
मैं लिखना चाहूं तुम्हें अगर
लिख दूँ तुम्हें स्याही से हर पन्नों पर
डिम्पल राठौड़
भोजाण,राजगढ़, चूरू