एक बार फिर अंतर्मन में सवालों की सेज सजने लगी..
विक्षिप्त,व्याकुल,विद्रोही मन पुनः निराशा की भेंट चढ़ने लगी..
छाने लगी चहुँ ओर अंधियारे की चादर..
हाथ जब अपना छुड़ाकर वो पुनः लौट जाने लगी..
वो साथ मेरे जब तक थी..
मन हर्षित था,चंचल था,पुलकित सारी काया थी..
बेतरतीब तरंगें उठती,खुशियों की बस साया थी..
पुनः घनघोर उदासी छाने लगी..
हाथ जब अपना छुड़ाकर वो पुनः लौट जाने लगी..
आँखे उसकी भींगी थी..
मन भावविभोर हो व्याकुल था..
वो छुपाकर सारी तकलीफें..
बस जाने को आतुर बतलाने लगी..
नाम उसका जज़्बातें मेरी..
जोर-जोर चिल्लाने लगी..
हाथ जब अपना छुड़ाकर वो पुनः लौट जाने लगी..
-प्रियजीत✍