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Rambriksh kavita

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मोती सा मस्तक पर झिलमिल
लुढ़क रहा धीरे धीरे
झर झर झरता पग तल रज में ,

शीर्षक-विद्यार्थी की ब्यथा

खेल खेल में शिक्षा हो पर
शिक्षा क

नर नारी में भेद रहा है
          कि नर से भारी नारी 

कविता-गुलाब और कांटे

कांटों में पला बढ़ा जीवन
संग पत्ते बीच

    गिल्ली डंडा बाघा बीता
    छुक छुक इंजन वाला खेल,
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शीर्षक-   बढ़ते कदम
 मुसाफिर!
       तान

शीर्षक-      दु,:ख की बदली
          रात भयान

शीर्षक- उड़ते बादल
             
खींच खी

शीर्षक-      दु,:ख की बदली
          रात भयान

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