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<div>शीर्षक- दु,:ख की बदली</div><div> रात भयान
<div>शीर्षक- उड़ते बादल</div><div> </div><div>खींच खी
<div>शीर्षक- बढ़ते कदम</div><div> मुसाफिर!</div><div> तान
<div> गिल्ली डंडा बाघा बीता</div><div> छुक छुक इंजन वाला खेल,</div><div>&n
<div>कविता-गुलाब और कांटे</div><div><br></div><div>कांटों में पला बढ़ा जीवन</div><div>संग पत्ते बीच
<div>नर नारी में भेद रहा है</div><div> कि नर से भारी नारी </d
<div>शीर्षक-विद्यार्थी की ब्यथा</div><div><br></div><div>खेल खेल में शिक्षा हो पर</div><div>शिक्षा क
<div>सहसा एक दिन नजर पड़ा </div><div>छत के एक घोंसले पर</div><div>लगा सोचने बड़े देर तक</div><d
<div>नयी नवेली खिली गुलाब सी,</div><div> &nbs
<div>मोती सा मस्तक पर झिलमिल</div><div>लुढ़क रहा धीरे धीरे</div><div>झर झर झरता पग तल रज में ,</div>
<div>भटक रही थी बूढ़ी महिला</div><div>तम तमाती धूप में |</div><div>अधमरी सी झुकी खड़ी थी, </div
<div> शीर्षक-नव वर्ष का सवेरा</div><div><br></div><div>नये साल का आया पावन सवेरा</div><div>पावन
शीर्षक-मेरी शान तिरंगा है पिता कौन क्यों है लेटा ?ओढ़े कफ़न तिरंगा,कंधों पर ले चार खड़े हैंआंख से बहती गंगा,बेटा बुला रहा है उनकोकरुणा से रो रोकर,गिरी धरा पर मां शिथिलसिंदूर अश्रु से धोकर,आ
-बेरोज़गारी के हाथकविताआदि अंत हो या अनन्त होमिटी कहां है क्षुधा किसी कीसायद इसी लिए ही ईश्वरकर खाने के लिए हाथ दीइन हाथों से मेहनत करनासीखा मैंने इस आशा सेसपनो को साकार करुंगारोजगार
कविता-होली में हो लें हम एक-दूसरे के|होली के रंगों मेंमन के उमंगों मेंलोगों के संगों मेंझूम झूम जाएं हमघूम घूम गाएं हम होली में हो लें हम एक-दूसरे केऋतु के वसंतों मेंमदमस्त अंगों मेंफूलों के रंगो