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लाज़ ( भाग - एक)

3 अप्रैल 2022

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(इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।  )

कानपुर शहर से कुछ दूरी पर रतनपुर गांव में रहता था सुखलाल,  सुखलाल जब पाँच साल का था तब उसकी  माँ का स्वर्गवास हो गया और जब आठ साल का हुआ तब पिता का साया उसके सर से हट गया ,उसके बड़े भाई रामलाल और भाभी शोभा ने उसका पालन पोषण किया  । कानपुर की यूनिवर्सिटी से उसको बी०ए० तक पढ़ाया , और उसके बाद सुखलाल को  चीनी मिल में मुनीम का काम मिल गया, मालिक ने पूरा काम सुखलाल पर ही छोड़ रखा था ,  पहले तो महीने दो महीने में हिसाब किताब देख लिया करते थे, और जब सुखलाल की ईमानदारी पर पूरा भरोसा हो गया तो पूरी जिम्मेदारी सुखलाल को सौप दी , सुखलाल भी बड़ी ईमानदारी से काम किया करता था, मजाल क्या एक पैसा भी इधर उधर हो जाये। अच्छी तनख्वाह थी गांव के बीच मे मकान था ,दोनों भाई घर के अलग अलग भाग में रहते थे । राम लाल के दो बेटे रिंकू छः साल और सोनू तीन साल का था। साल भर पहले ही पास के ही गांव से सुखलाल की शादी सुमन से हुए थी , आज घर मे कोई खुशी की खबर आने बाली थी,  सुखलाल अपने आँगन में एक नीम का पौधा लगा ही रहा था कि अंदर से कमला मौसी  दौड़ती हुई आयी और खुशी से चिल्लाई की मुबारक हो लक्ष्मी आई है , बिटिया हुई है, सुखलाल की पहली संतान थी तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही था। वह मौसी की ओर दौड़ा और उसको गले से लगा लिया  और बोला कि , “ क्या खबर सुनाई है मौसी जी चाहता है कि तुम्हारा मुँह लड्डूओ से भर दूँ, और सुमन कैसी है।
मौसी ने कहा, “ वो भी ठीक  ही है,
वो और कुछ कहती उससे पहले अंदर से सुखलाल की भाभी  शोभा बच्ची को गोद मे उठाकर ले आई, सुखलाल उनकी ओर दौड़ा और बच्ची की तरफ दोनों हाथ बढ़ाये, तभी शोभा बच्ची को पीछे हटाते हुए बोली,“अरे पहले हाथो की मिट्टी तो धो लो देवर जी फिर मेरी फूल जैसे गुड़िया को हाथ लगाना।
“ "हाथों पर नज़र ड़ालते हुए कहा।“अरे मैं तो भूल ही गया था,"
और हाथो पर पानी डालते हुए कहा, “देखो भाभी मैंने ये नीम का पौधा अभी अभी अपने आँगन में लगाया है, ये पौधा भी हमारी बिटिया के साथ साथ बड़ा होगा।"
इतने मैं शोभा ने कहा, “ तो फिर हमारी बिटिया का नाम “नीमा " कैसा रहेगा ।
हाथो को सीने पर रगड़कर सुखाते हुए आगे बढ़ाए और बोला,“ठीक है भाभी तुम्हारी बात कोई काट सकता है घर मे, माँ और बाबू जी के बाद आपने और भईया ने ही इस घर को संभाला है , मैं तो आठवीं में पढ़ता था, इतनी समझ नही थी मुझे फिर आपने ही तो मुझे पढ़ाया लिखाया, और इस काविल बनाया,। अब एक और जिम्मेदारी सँभालो ।
और शोभा की और हाथ बढ़ा दिए ,
शोभा ने फिर से बच्ची को पीछे हटाते हुए कहा,“ ऐसे मक्ख़न लगाने से काम नही चलेगा  पहले बताओ हमें क्या मिलेगा।"
“अरे भाभी जो तुम कहो," सुखलाल ने मुस्कुराते हुए कहा।
“तो पक्का बनारसी साड़ी देनी पड़ेगी" शोभा ने मुस्कुराते हुए कहा ।
इतने में किसी के खाँसने की आवाज़ आयी , जो आँगन की तरफ ही आ गए, वो शोभा के पति  रामलाल थे, शोभा ने रामलाल की तरफ बच्ची को बढ़ाते हुए कहा, “ देखो नीमा ताऊ जी आ गए,  रामलाल भी बच्ची की तरफ देखने लगे , और मुस्कुराए,  तभी बाहर से रिंकू और सोनू भी आ गए , शोभा ने नीमा को सुखलाल की गोदी में दे दिया और अंदर चली गई,
सुखलाल  ,रामलाल और दोनों बच्चे  वही पड़ी चारपाई पर बैठ गए नीमा को खिलाने लगे, ।
इतने में अंदर से शोभा दौड़ती हुई आई , और सुखलाल से बोली ,“जल्दी से कोई गाड़ी का इंतज़ाम करो, सुमन की तबियत अचानक खराब हो गई है ।"
सुखलाल ने तुरंत नीमा को शोभा की गोद मे पकड़ा दिया और  बाहर की ओर भागा।
कुछ ही देर में सुमन को अस्पताल ले जाया गया अधिक रक्तपात होने के कारण उसको बचाया नही जा सका, अचानक क्या हुआ और कैसे हुआ कोई अंदाज़ा नही लगा पाया ।
कुछ लोगो का कहना था कि गांव में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण बढ़िया इलाज न मिलने के कारण ये सब हो गया तो कुछ घर मे प्रसव को कराने को ही गलत कह रहे थे,
जहाँ कुछ समय पहले सुखलाल  के मन मे खुशीयों की लहर दौड़ रही थी वही अब उसके ऊपर दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा था। किसी को सुखलाल और नीमा पर दया आ रही थी तो कुछ महिलायें मासूम नीमा  को ही दोषी ठहरा रही थी , जन्म लेते ही माँ को खा जाने वाली दुर्भाग्यशाली बताने में भी पीछे नही थी
खुशी  का माहौल गम में बदल चुका था, जहाँ नीमा के जन्म के वाद के संस्कारों की शुरुआत होनी थी, वहाँ सुमन के अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही थी।

                                           -क्रमशः  -

(प्रिय पाठकों हमारे समाज मे अक्सर ऐसी घटनाएं होती रही है जब बच्चे को जन्म देने के बाद माँ का निधन हो जाता है उसके बाद समाज मे मासूम बच्चो को उनकी मौत का जिम्मेदार ठहराया जाता है, और उनको समाज द्वारा वहिष्कृत किया जाता हैं, या घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।
क्या नीमा के साथ भी ऐसा ही कुछ होगा पढ़ते है अगले भाग में )

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लाज़
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“लाज़” एक शब्द नही बल्कि औरत का वह कीमती आभूषण है , और समाज औरत को यह शिक्षा देता है कि वह पूरे जीवन इसकी रक्षा करे, पर ऐसा देखा गया है कि जो समाज औरत को यह शिक्षा देता है, औरत को उसी समाज से अपनी लाज़ को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं। यह रचना समाज के सामने यह प्रश्न खडा करती है कि “ क्या औरत की लाज़ की जिम्मेदारी सिर्फ औरत की ही हैं?"

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