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लाज़ ( भाग - दो)

27 अप्रैल 2022

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सुखलाल भीतर से टूट चुका था, बेटी के जन्म का हर्षोल्लास पत्नी की मौत के  मातम में बदल चुका था,  लोगो का तो कहना था कि बड़ा अभागा है सुखलाल उसके जीवन मे पहले उसकी माँ उसका साथ छोड़ कर गई फिर पिता और अब पत्नी। पर इसमें वेचारे सुखलाल का क्या दोष उसकी किस्मत ही ऐसी थी, उधर रामलाल और शोभा भी बहुत दुखी थे, जिस भाई को बच्चे की तरह पाला उसका घर उजड़ते कैसे देख सकता था रामलाल, शोभा नीमा को संभाल रही थी , उसको ऊपर का दूध पिलाती थी और नीमा की बदकिस्मती पर अफसोस करती की बेचारी माँ का दूध भी नही है इसके नसीव में, । शोभा सुमन को अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी उनमे कभी भी किसी बात को लेकर अन्य देवरानी जेठानी जैसे झगड़े नही हुआ करते थे, इसका एक मुख्य कारण यह था कि सुखलाल अपने भाई और भाभी को माँ बाप की तरह मानता था और सुमन को सख्त हिदायत दे रखी थी कि अगर इनका दिल दुखा तो फिर समझो तुमने मेरे दिल पर चोट की है, अक्सर परिवारों में यही होता हैं कि पति घर के जिस सदस्य की बुराई करता है पत्नी की नज़र में उस शख्स की अहमियत कम हो जाती है और जिस शख्स को पति अहमियत देता है पत्नी भी उसको अहमियत देती है। और शायद इसीलिए पूरे गाँव मे उनके बीच के प्यार के उदाहरण दिए जाते थे, ।
घर मे अन्य रिस्तेदार भी एकत्रित थे, सभी परिवार के गम में शामिल होने आए थे, उनमे से कुछ रिस्तेदार ऐसे भी थे जो ये चाहते थे कि अपनी बेटी अथवा बहन  की शादी की बात सुखलाल के साथ चलाए , पर ये मौका सही नही था, पर उनको डर भी था कि कही कोई और रिश्ते की बात न कर ले , इसलिए कई रिस्तेदार  रामलाल और कई शोभा के कान में यह बात डाल गए, ।
धीरे धीरे लगभग पंद्रह दिन बीत चुके थे, सुखलाल के दिल से सुमन की यादें जा ही नही रही थी, सारे रिस्तेदारो के घर से जाने के बाद घर मे सूनापन बढ़ गया था, सुखलाल अपने आँगन में छोटे से नीम के पौधे के पास  दीवार के सहारे बैठा था , और उससे मन की बाते कर रहा था , वह उसको बता रहा था कि कैसे जब वह पहली बार सुमन को देखने गया था तब सुमन ने किस तरह उसके साथ मजाक किया था, वह उसे बताता हैं कि जब वह अपनी भाभी भईया दोनों बच्चे और मौसी के साथ सुमन के घर पहुंचा तो सभी बाहर कमरे में बैठे बाते कर रहे थे, सुखलाल बार बार उधर ही देख रहा था जिधर से सुमन को चाय लेकर आना था,  पर्दा हिलता तो सुखलाल की धड़कने तेज़ हो जाती, और जब उस परदे के पीछे से कोई और निकलता तो वह निराश हो जाता, इतने में सुमन की माँ ने  आवाज़ लगाई , “सुमन चाय ले आओ" ।
अब सुखलाल को लग रहा था कि इंतज़ार की घड़ियां खत्म होने वाली है, इतने में परदा हिला  और परदे के पीछे से एक मोटी और सांवली सी  लड़की चाय की ट्रे लेकर आ रही है,  सुखलाल तुरंत अपनी भाभी की तरफ देखने लगा, वह सोच रहा था कि भाभी ने तो कहा था कि लड़की बहुत सुंदर है,  पर ये तो.... , 
सुखलाल ने अपनी भाभी की तरफ देखा और कहा , “भाभी मुझे आपसे बात करनी है।
और खड़ा होकर बाहर आँगन की तरफ आ गया, शोभा  भी पीछे पीछे आ गई, सुखलाल ने शोभा से कहा,“ भाभी ये लड़की है ?
शोभा ने हँसी छुपाते हुए कहा, “मुझे तो लड़की ही दिख रही है।"
अगर इससे शादी की तो तुम्हारी कितनी बदनामी होगी, लोग कहेंगे कि भाभी ने देवर के लिए कैसी लड़की ढूंढी है, ।
शोभा ने कहा, “फिर"
“फिर क्या भाभी चलो मना करो और घर चलते है।" सुखलाल ने कहा
शोभा ने कहा, “ ठीक है चलो"
दोनों आकर अपने अपने स्थान पर बैठ गए। सुखलाल अपना सर नीचे डालकर बैठ गया,
इतने में सुमन की माँ ने कहा,“बेटा सुमन सब को चाय दो।"
सुखलाल अभी भी सर को नीचे डाले बैठा था, सभी को चाय देने के बाद जब सुमन ने सुखलाल की तरफ चाय बढ़ाई तो सुखलाल ने सर को नीचे किए ही चाय पकड़ी, अचानक उसकी नज़र उसकी ओर चाय बढ़ाते हुए हाथो की खूबसूरत उंगलियों पर गई उसने तुरंत सर ऊपर उठाया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया,  हड़बड़ाहट में उसके हाथ से चाय की प्याली छूट गई , सारी चाय नीचे जा गिरी, पर सुखलाल की नज़र सुमन के चेहरे पर पहुँच चुकी थी और अब चेहरे से हट ही नही रही थी,
इतने में शोभा ने कहा, “चलो अच्छा ही हुआ कि चाय गिर गई हमें वैसे भी कौन सा रिश्ता करना है।  भाई लड़के को लड़की पसंद नही है।"
इतने में सुखलाल हिचकिचाते हुए बोला, भाभी ये वो लड़की  नही वो लड़की ये लड़की नही।
इतने में रामलाल ने कहा, “अच्छा तो तुमको वो उस लड़की से शादी करनी है। (मोटी लड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा)
शोभा ने कहा, “नही जी ये बोल रहा है कि इसको लड़की पसंद ही नही है।"
इतने में सुमन के पिता जी बोले अच्छा जी आपको  लड़की नही पसंद है तो फिर , नमस्कार
रामलाल और शोभा बाहर की तरफ चलने लगे तभी सुखलाल ने कहा,“अरे भाभी लोग क्या कहेंगे कि इतनी खूबसूरत लड़की से अपने देवर की शादी नही कराई, कितनी बदनामी होगी, आपकी।
शोभा जोर जोर से हँसने लगी सभी लोग ठहाके मारकर हँसने लगे , सुखलाल सब समझ गया कि यह सबने मिलकर योजना बनाई थी,।
सुखलाल हल्की मुस्कुराहट के साथ अपनी यादों से वापस लौटा और फिर उसके चेहरे पर मायूसी छा गई।
    
                            ★  क्रमशः ★

( प्रिय पाठकों आपके स्नेह के लिए धन्यवाद  इस कड़ी में आभास हुआ कि अपनो की यादों को भुला पाना कितना मुश्किल होता है। हम  जीवन भर अपनो से गिले शिकवे करते रहते है पर हमे उस शख्स की अहमियत उसके जाने के बाद पता चलती है, इसलिये अपनो के प्यार से बढ़कर कुछ भी नही होता। )

किस तरह सुखलाल सुमन की यादों से बाहर निकलता है पढ़ते है अगले भाग में 

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लाज़
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“लाज़” एक शब्द नही बल्कि औरत का वह कीमती आभूषण है , और समाज औरत को यह शिक्षा देता है कि वह पूरे जीवन इसकी रक्षा करे, पर ऐसा देखा गया है कि जो समाज औरत को यह शिक्षा देता है, औरत को उसी समाज से अपनी लाज़ को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं। यह रचना समाज के सामने यह प्रश्न खडा करती है कि “ क्या औरत की लाज़ की जिम्मेदारी सिर्फ औरत की ही हैं?"

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