रिश्ते
दाग बेशक ढ,ूँढिये,,दामन न खींचिये,
ख़ुद की करतूतों से यूँ,,,आँखें न मींचिये ।
दोस्त जिगरी हो तुम्हारा ,,या निरा मुख़ालिफ़ ,
ज़िन्दगी में रिश्ते,, शराफ़त से सींचिये ।
जो तुमहे मजबूर नज़रों से,,, बुलाता हो,
ज़ख़्म सहलाकर उसे,,बाहों में भींचिये ।
बाद तेरे याद कर,,रोया करे'सुशील'
ऐसी मोह