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आराध्य

31 जनवरी 2015

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आदि से जो अंत तक ,लिखता तुम्हारा भाग्य होगा, वो ही तो आराध्य होगा । साधना जिसकी निरन्तर , वंदना जिसकी युगाँतर , भाल जिसकी भक्ति में ,करने नमन के बाध्य होगा , वो ही तो आराध्य होगा । मिला दृढ़ व्यक्तित्व जिससे, कर्मनिषठ कृतित्व जिससे, जो तुम्हारे कर्मपथ की,प्रेरणा का साध्य होगा , वो ही तो आराध्य होगा । विषयहीन सुयतन कैसा, दिशाहीन प्रयत्न कैसा, लक्ष्य का संँधान प्रेरक ,मनुज जो सम्भावय होगा, वो ही तो आराध्य होगा ।।

सुशील चन्द्र तिवारी की अन्य किताबें

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वसंत

25 जनवरी 2015
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वंदन वसंत, वंदन वसंत , हे वीणावादिनि के वसंत । ज्ञानोदय का अभिनव प्रभात , हेजन जन जीवन में रहा बिखर, आलोकित व्योम ,धरा,कण कण, मदमाती पवन बहती निर्झर , तुझसे वसुधा का तिमिर अंत । हे वीणावादिनि..... तेरी वीणा सुर लहरी से, प्रस्फुटित प्राकृतिक नया साल, आचछादित सुमन जड़ित आँचल, बौराये तरू

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पहली किरण

26 जनवरी 2015
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रश्मि स्वर्णिम सूर्य से धरती पे लाई प्रात को, लो बढ़ाकर हाथ अपना थाम लो सौग़ात को, चक्षुओं से बोझ पलकों का हटा देखो घड़ी, स्वप्न में जिसके तू खोया सामने तेरे खड़ी, चाँद तारों को समेटा,दी विदाई रात को । लो बढ़ाकर...... ये नई स्फूर्ति की प्रतिमा,ये जीवन रागिनी, हृदय का आवेग,मन मन्द

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आराध्य

31 जनवरी 2015
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आदि से जो अंत तक ,लिखता तुम्हारा भाग्य होगा, वो ही तो आराध्य होगा । साधना जिसकी निरन्तर , वंदना जिसकी युगाँतर , भाल जिसकी भक्ति में ,करने नमन के बाध्य होगा , वो ही तो आराध्य होगा । मिला दृढ़ व्यक्तित्व जिससे, कर्मनिषठ कृतित्व जिससे, जो तुम्हारे कर्मपथ की,प्रेरणा का साध्य होगा , वो ही

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रिश्ते

8 अप्रैल 2015
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दाग बेशक ढ,ूँढिये,,दामन न खींचिये, ख़ुद की करतूतों से यूँ,,,आँखें न मींचिये । दोस्त जिगरी हो तुम्हारा ,,या निरा मुख़ालिफ़ , ज़िन्दगी में रिश्ते,, शराफ़त से सींचिये । जो तुमहे मजबूर नज़रों से,,, बुलाता हो, ज़ख़्म सहलाकर उसे,,बाहों में भींचिये । बाद तेरे याद कर,,रोया करे'सुशील' ऐसी मोह

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तू

12 अप्रैल 2015
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तू भी क्या और मैं भी क्या, दोनों ने रस्में तोड़ दीं, तूने दिल तोड़ा मेरा और, मैंने क़समें तोड़ दीं ।

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जलजला

30 अप्रैल 2015
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बारिश, ओले, तूफान, कया कम थे, मेरी हस्ती मिटाने को । कि , तूने धरती भी हिला दी, मुझे ज़िन्दा दफ़नाने को ।

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