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नमस्ते सर। मैं पूर्व में ही माफ़ी मांगना चाहूंगी क्यूंकि जब मैंने कोई भी काम के लिए कदम बढ़ाया मुझसे गलती हुईं। आज जो मैं लिखने जा रही हूं न वो कोई पत्र है न कोई कहानी ये मेरे सत्य ह्र
क्यूं कोई अधुरा है किसी के बिना! हमको कोई क्यूं नही कहता, रात हो चली है शाम की इंतज़ार क्यूं? यू ही ढल गए आरजू मेरी, दफ़न न हुआ अब तक ताजे रहे गम मेरे! लोग कहते हैं मुड़ जाओ इस राह से, क्या मुमकिन है
क्यूं बदला रे तू जीवन क्यूं न छोड़ दिया तूफ़ान पे रहने देते हमें उस समंदर में डूबने के लिए क्यूं लहरों से बचाया तूने भले आज मुस्कुरा रहे हैं, लेकिन दुःख छिपा है कहीं, कोन देखता है, मुस्कुरा दो बस दुनि