मंद फुहारों का,
तेज़ बौछारों का,
आया सावन मनभावन !
काले घुंघराले बादल,
गोर इतराते बादल,
हवा के उड़न- खटोले पर,
उड़ते चले आते बादल |
कभी जुड़ जाते बादल,
कभी फट जाते बादल,
सूरज से लुका-छुपी खेलते बादल |
ढुली-ढुली हरी पत्तियां कुछ,
बीच में हल्की हरी बच्चियाँ कुछ,
अहसास सा दिलाती हैं,
मानो लगी हैं बत्तियाँ कुछ |
दूर से आती कजरी की धुन,
धरती ने हरी चादर ली बुन !
मेंहदी लगे पैरोँ में पायल की छुन-छुन
सहसा एक दीप जला,
अंबर के इस छोर से,
उस छोर तक कौन चला?
धड़कन के नगाड़ों ने,
सावन के स्वागत में,
सुर भरा,
सावन, हरा-भरा !!
-उषा