shabd-logo

क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016

172 बार देखा गया 172

क्या ये वही आसमान है? 

जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | 

एकदम निस्तब्ध, 

न कोई हरकत, 

न कोई शब्द; 

उत्तर के आसमान पर,

कोहरे की झीनी परत का परिधान, 

रोज़-ब-रोज़

वही डरा सा आसमान | 

उधर पूरब का सूरज है 

की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, 

जागने का नाम ही नहीं लेता, 

इधर दिशाएं हैं, 

कि हाथ पसारे खड़ी हैं | 

तुम्हारी एक किरण, 

मात्र एक किरण पर,

उनकी नज़रें अड़ी हैं | 

किन्तु नहीं, 

'प्रभाकर' तुमने निज नाम 

की गरिमा को सार्थक नहीं किया 

इसलिए रोज़ ही सुबह ने 

'शाम' का आलिंगन किया 
  
गुरमुख सिंह

गुरमुख सिंह

सुंदर कविता !

17 जून 2016

गुरमुख सिंह

गुरमुख सिंह

सुंदर कविता !

17 जून 2016

1

क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016
0
2
1

क्या ये वही आसमान है? जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | एकदम निस्तब्ध, न कोई हरकत, न कोई शब्द; उत्तर के आसमान पर,कोहरे की झीनी परत का परिधान, रोज़-ब-रोज़वही डरा सा आसमान | उधर पूरब का सूरज है की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, जागने का नाम ही नहीं लेता, इधर दिशाएं हैं, कि हाथ पसारे खड़ी हैं | तुम्हारी एक

2

आया सावन मनभावन !

17 जून 2016
0
1
0

मंद फुहारों का,तेज़ बौछारों का, आया सावन मनभावन ! काले घुंघराले बादल, गोर इतराते बादल, हवा के उड़न- खटोले पर,उड़ते चले आते बादल | कभी जुड़ जाते बादल, कभी फट जाते बादल, सूरज से लुका-छुपी खेलते बादल | ढुली-ढुली हरी पत्तियां कुछ,बीच में हल्की हरी बच्चियाँ कुछ, अहसास सा दिलाती हैं, मानो लगी हैं बत्तियाँ कुछ

3

क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016
0
1
1

क्या ये वही आसमान है? जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | एकदम निस्तब्ध, न कोई हरकत, न कोई शब्द; उत्तर के आसमान पर,कोहरे की झीनी परत का परिधान, रोज़-ब-रोज़वही डरा सा आसमान | उधर पूरब का सूरज है की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, जागने का नाम ही नहीं लेता, इधर दिशाएं हैं, कि हाथ पसारे खड़ी हैं |   

4

श्री हनुमन निवास

17 जून 2016
0
2
1

श्री हनुमन निवास, बस उतना ही बड़ा, जितना मूर्ति का व्यास | कुछ फूल चढ़े हैं, कुछ नीचे पड़े हैं | किसी ने ताज़ा सिन्दूर लगाया है,बेतरतीब से उसके कुछ छींटे,  इधर-उधर टपक गये हैं, छोटी सी cemented चौकी, धूप से तपी पर, एक असहाय सी कृशकायी महिला ,श्रद्ध्यवश आ चढ़ी,पैर जल उठे तो, नीचे उतर चप्पल पहन ली | और, पु

5

Life ?

28 अक्टूबर 2016
0
0
1

Like a globe,Rotates life ;Features late or early,appear by and by.indelible prints of reminiscences;reveal no misteries but leave us. aghast.A,link ,a bond , a dotI know not,how it framed a knot ,unable to untie.thou hard I try.talking of myself not you;have tried to ridbut of no use.SoAccepted

---

किताब पढ़िए