श्री हनुमन निवास,
बस उतना ही बड़ा,
जितना मूर्ति का व्यास |
कुछ फूल चढ़े हैं,
कुछ नीचे पड़े हैं |
किसी ने ताज़ा सिन्दूर लगाया है,
बेतरतीब से उसके कुछ छींटे,
इधर-उधर टपक गये हैं,
छोटी सी cemented चौकी,
धूप से तपी पर,
एक असहाय सी कृशकायी महिला ,
श्रद्ध्यवश आ चढ़ी,
पैर जल उठे तो,
नीचे उतर चप्पल पहन ली |
और,
पुनः आ चढ़ी,
क्षमा माँग ली,
गिरे फूल उठाए,
हनुमान पर चढ़ाए
और दलील दी,
हेम फुल घर भूल आए |
टपके सिन्दूर से बिंदी लगैए,
पुनश्च माँग भर
लंबे सुहाग की गुहार लगायी |
सहसा ही होठ बुदबुदाए,
शायद गलती समझ आई
बोली- अब नारी नहीं
खुद सा ब्रह्मचारी बनाओ ,
घर के कोलाहल से थक गयी हूँ,
अपने जैसा छोटा सा निवास
मुझे भी दिलाओ |
-उषा