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श्री हनुमन निवास

17 जून 2016

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श्री हनुमन निवास, 

बस उतना ही बड़ा, 

जितना मूर्ति का व्यास | 

कुछ फूल चढ़े हैं, 

कुछ नीचे पड़े हैं | 

किसी ने ताज़ा सिन्दूर लगाया है,

बेतरतीब से उसके कुछ छींटे,  

इधर-उधर टपक गये हैं, 

छोटी सी cemented चौकी, 

धूप से तपी पर, 

एक असहाय सी कृशकायी महिला ,

श्रद्ध्यवश आ चढ़ी,

पैर जल उठे तो, 

नीचे उतर चप्पल पहन ली | 

और, 

पुनः आ चढ़ी,

क्षमा माँग ली, 

गिरे फूल उठाए, 

हनुमान पर चढ़ाए 

और दलील दी, 

हेम फुल घर भूल आए | 

टपके सिन्दूर से बिंदी लगैए, 

पुनश्च माँग भर 

लंबे सुहाग की गुहार लगायी | 

सहसा ही होठ बुदबुदाए,

शायद गलती समझ आई 

बोली- अब नारी नहीं 

खुद सा ब्रह्मचारी बनाओ ,

घर के कोलाहल से थक गयी हूँ, 

अपने जैसा छोटा सा निवास 

मुझे भी दिलाओ | 

-उषा 

रेणु

रेणु

बहुत ही सुंदर सारगर्भित रचना -- उषा जी -- बहुत शुभकामना ------

29 मई 2017

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क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016
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क्या ये वही आसमान है? जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | एकदम निस्तब्ध, न कोई हरकत, न कोई शब्द; उत्तर के आसमान पर,कोहरे की झीनी परत का परिधान, रोज़-ब-रोज़वही डरा सा आसमान | उधर पूरब का सूरज है की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, जागने का नाम ही नहीं लेता, इधर दिशाएं हैं, कि हाथ पसारे खड़ी हैं | तुम्हारी एक

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आया सावन मनभावन !

17 जून 2016
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मंद फुहारों का,तेज़ बौछारों का, आया सावन मनभावन ! काले घुंघराले बादल, गोर इतराते बादल, हवा के उड़न- खटोले पर,उड़ते चले आते बादल | कभी जुड़ जाते बादल, कभी फट जाते बादल, सूरज से लुका-छुपी खेलते बादल | ढुली-ढुली हरी पत्तियां कुछ,बीच में हल्की हरी बच्चियाँ कुछ, अहसास सा दिलाती हैं, मानो लगी हैं बत्तियाँ कुछ

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क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016
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क्या ये वही आसमान है? जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | एकदम निस्तब्ध, न कोई हरकत, न कोई शब्द; उत्तर के आसमान पर,कोहरे की झीनी परत का परिधान, रोज़-ब-रोज़वही डरा सा आसमान | उधर पूरब का सूरज है की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, जागने का नाम ही नहीं लेता, इधर दिशाएं हैं, कि हाथ पसारे खड़ी हैं |   

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श्री हनुमन निवास

17 जून 2016
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श्री हनुमन निवास, बस उतना ही बड़ा, जितना मूर्ति का व्यास | कुछ फूल चढ़े हैं, कुछ नीचे पड़े हैं | किसी ने ताज़ा सिन्दूर लगाया है,बेतरतीब से उसके कुछ छींटे,  इधर-उधर टपक गये हैं, छोटी सी cemented चौकी, धूप से तपी पर, एक असहाय सी कृशकायी महिला ,श्रद्ध्यवश आ चढ़ी,पैर जल उठे तो, नीचे उतर चप्पल पहन ली | और, पु

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Life ?

28 अक्टूबर 2016
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Like a globe,Rotates life ;Features late or early,appear by and by.indelible prints of reminiscences;reveal no misteries but leave us. aghast.A,link ,a bond , a dotI know not,how it framed a knot ,unable to untie.thou hard I try.talking of myself not you;have tried to ridbut of no use.SoAccepted

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