अच्छा लग रहा है न आज ऐसे सड़क के किनारे बैठे हुए, इस इंतजार में कि क्या हुआ जो बहु ने निकाल दिया घर से,बेटा तो हमारा है न ,वो हमें लेने जरूर आएगा ।
अरे याद करो भाग्यवान आज से 40 साल पहले की बात को मेरे लाख मना करने के बावजूद तुमने मेरी विधवा माँ पर न जाने क्या क्या इल्ज़ाम लगा कर घर से निकाला था।
कितनी मेहनत करके मेरी माँ ने मुझे पढ़ाया लिखाया,बड़ा आदमी बनाया,लेकिन तुमने क्या किया?
डायन, चोरनी, कुल्टा बोलकर घर से निकाल दिया उसे ।
उस दिन तुमने मुझे वापस अपनी माँ को घर ले जाने दिया था क्या ? रोक लिया था न अपने बेटे की कसम देकर ।
तो आज फिर क्यों आस लगाए बैठी हो अपने बेटे से, कि वो तुम्हे लेने आएगा।
याद है कैसे तुम्हारा बेटा अपनी दादी के आँचल को पकड़े हुए था ? उन्हें जाने नही दे रहा था , पर उसे भी तुमने अपनी दादी से दूर कर दिया था हमेशा के लिए।
वो तुम्हारा ही बेटा है न ,उसने यही तो सीखा था कि बूढ़े माँ बाप की जगह घर में नहीं होती । चलो हम भी वहीं चलते हैं,जहाँ वर्षों पहले हमारी लाचार और बेबस माँ को सहारा मिला था।
कहते कहते जगदीश फफक फफक रो पड़ा था,पश्चाताप के आँसू तो जगदीश के साथ ही शांति के आँखों में भी थे,पर किसी ने सच ही कहा है,
"अब पछताये क्या होत ,जब चिड़िया चुग गयी खेत"