हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में डिजिटल युग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आज हर काम डीजिटल होता जा रहा है। युवा हों या उम्र दराज हर उम्र के लोग मोबाईल स्क्रीन पर बहुत ज़्यादा समय बिताने लगे हैं। स्मार्टफोन, क
रिश्तों की कड़ियों से जुड़े होंदुःख तकलीफ़ में एक दूजे के साथ खड़े होंकोई न कर पाए उन पर वारवो कहलाता है परिवार!!जहाँ सबको सबकी परवाह होसभी को अपनों का ख़्याल होकरते हों सभी एक दूसरे से प्यारवो कहलाता है प
जब तक हाथ-पैर चलते थे तब तक अंशुमन बाबू को सभी पूछते थे। घर के बुजुर्ग थे, क्यों न पूछे। लंबा चौड़ा परिवार था उनका। नाती-पोतों से भरा-पूरा घर। अंशुमन बाबू उसी नाती-पोतों के बीच घिरे रहते। कोई
किस्सा है अमरावती का, किस्सा कोई बरसों पुराना नहीं बल्कि हाल-फ़िलहाल का है | अमरावती जो 72-73 वर्ष की हैं | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्त
शालिनी ( प्यारी सी बालिका ) बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंदर - सी, बहुत प्यारी - सी और विद्यालय का गृह कार्य समय पर क
आज दिनांक 5 नवंबर 2023 की एक छोटी सी घटना !... ◆ यह छोटा सा संसार मेरा, मुझसे उम्मीदों से जुड़ा हुआ बेटी रूठी हुई थी एक ज़िद्द पर अपनी, उसकी माँ ने उम्मीद से देखा मुझको !! मैं लाचार से खड़ा हुआ, खा
आकाश एक बच्चे के नीले ब्लेजर को बड़ी ही हसरत से देख रहा था। “पापा मुझे भी ऐसा ही एक ब्लेजर दिला दो”, आकाश ने पराग के हाथ को धीरे से खींचकर कहा। “अरे क्या करेगा उसे लेकर”, पराग ने कहा, “देख न कैसे ठण
नवीन ने नयी कार क्या खरीदी बधाई देने वालों का ताँता सा लग गया। हर कोई आकर उसे नयी कार की बधायी देता ,मिठाई मांगता और फिर लगभग एक जैसे सवालों की झड़ी लगा देता,"कितने की ली? क्या एवरेज देती है? साथ में
जब तक ये पत्र तुम्हारे हाथ में होगा, मैं अर्पणा और खुशबू को लेकर जा चुका होऊंगा, एक नए शहर में। सच पूछो तो ये ट्रांसफर मैंने जानबूझकर और ज़िद कर के लिया था वर्ना मेरा सबकुछ ठीक चल रहा था ऑफिस में। बल्
अपराजिता - जीवन की मुस्कराहटबड़े शहर से शादी करके आई अपराजिता जब से अपने ससुराल एक छोटे से गांव में आई तब से देख रही थी ससुराल में उसकी बुजुर्ग दादी सास का निरादर होता हुआ। ससुराल में उसके पति वि
लडका अपनी छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।अचानक से उसे लगा की, उसकी बहन पीछे रह गयी है।वह रुका, पीछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।लडका पीछे आ
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त। दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी बस की रफ़्तार के मुताबिक हिलती रहती हैं… झुककर मैंने प
मां - बाप तो हमसे बराबर ही प्यार करते है .. बस फर्क इतना सा है . . . . माँ का प्यार हमें दिख जाता है . . पिता के डांट से बचाते वक्त ...
आज सब्जी में नमक ज्यादा है,चावल थोड़ा गीले हो गए हैंरोटी जल गई ,चाय में मीठा कम हैभोजन तो अच्छा है, स्वाद नहीं है।अभी तो मैंने पोछा लगाया हैगीला तौलिया बिस्तर पर फेंका हैकितना काम करू, मैं भी इंसान हूँ
यह कहानी है एक छोटे से परिवार की जो अपने जीवन के फैसले लेने से पहले यह सोचता है की समाज क्या सोचेगा? उन्हें अपनी खुशियों से ज्यादा समाज की विचारधारा का ध्यान रखना ज्यादा जरुरी लगता था | लेकिन जब एक प
एक नौ वर्षीय बालक काशी के मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों पर बैठा हुआ था | उसकी आँखों से निकले हुए आंसू जो आग की गरमाहट से सूख से गए थे लेकिन उसका हृदय अभी भी विचलित था | घाट पर जल रही अनेकों चिताओं से निकल
यह कहानी पूरी तरह से काल्पनीक है और ये सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखा गया है । इस का किसी के लाइफ से कोई लेना देना नहीं हैं । हाँ ! अगर इस कहानी से आपको कुछ अच्छा सिखने को मिले , तो आप उसे अपने अंदर
यह कहानी है एक ऑटो वाले और एक नवयुवक प्रशांत की जो उस रात अपने घर को जल्दी पहुंचना चाहते थे। लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था इसीलिए उस दिन उन दोनों का अंतिम सफर था । इस कहानी को उस दिन की सुबह से
पत्र लेखन का जमाना, बदल गया चलन आज। कल लिखते बातें कितनी, जो बयां नहीं करते उतनी।। दूर होने पर आती याद, पत्र लेखन करते फरियाद। मनमीत की याद में आंसू, निकलते थे दिन रात।। कभी बेटी को शादी बाद, आती थी म