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अब तो अरुणोदय हो।

4 मार्च 2017

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अब तो अरुणोदय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।
-
उदयाचल से दिगदिगंत तक,
फैली अभिनव लालिमा ।
दीप करो विश्राम,ज्योति से-
अधिक तुम्हारी कालिमा।
देकर शरण तिमर से रण का,
और न अब अभिनय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।1।
-
अब तो धूप धरा पर उतरे,
चढ़ किरणों की पालकी।
आँगन में सज उठे रंगोली,
मोती और गुलाल की।
खिल जाए प्राची का पाटल,
जग-उपवन मधुमय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।2।
-
ताले खुलें साँकलें चटके,
निशि के कारागार के।
ऐसी हवा बहे हर देहली,
कर दे स्वच्छ बुहार के।
तुझको मुझसे मुझको तुझसे,
नहीं तनिक सा भय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।3।
-
पर फैलाकर उड़े चिड़कुली,
विस्तृत नील वितान में,
श्रम के विजय गीत गुंजित हों,
खेतों में खलिहान में।
वृन्दावनी वेणु की धुन में,
जन-गण-मन तन्मय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।4।

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अब तो अरुणोदय हो।नूतन सूर्य उदय हो।-उदयाचल से दिगदिगंत तक,फैली अभिनव लालिमा ।दीप करो विश्राम,ज्योति से-अधिक तुम्हारी कालिमा।देकर शरण तिमर से रण का,और न अब अभिनय हो।नूतन सूर्य उदय हो।1।-अब तो धूप धरा पर उतरे,चढ़ किरणों की पालकी।आँगन में सज उठे रंगोली,मोती और गुलाल की।खिल जाए प्राची का पाटल,जग-उपवन मध

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समय सिंहनी चींख रही है

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प्रसव वेदना है यह जिससे,समय सिंहनी चींख रही है।-भले रुदन से जग थर्राया।लगे धरा पर ही अघ आया।ऊँचे अम्बर से पौरुष की ,माँग धरित्री भींख रही है।(1)-काली रात घिरा अँधियारा।लड़ते-लड़ते दीपक हारा ।छिपी हार में जीत पूर्व में,पौ फटती सी दीख रही है।प्रसव वेदना है…………(2)-बहुत सहा है ताण्डव नर्तन।कुछ दिन और सह

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चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।

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चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।बढ़ती रहे नाविक ये जीवन की नाव।-धारा अनुकूल कभी।धारा प्रतिकूल कभी।कूल-कूल बदरौटी,धूप कहीं छाँह।चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।बढ़ती रहे नाविक ये जीवन की नाव।-वनपथ पर फूल कहीं।वनपथ पर शूल कहीं।वनपथ के पार कहीं,सपनों का गाँव।चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।बढ़ती रहे नाविक ये

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