अब तो अरुणोदय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।
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उदयाचल से दिगदिगंत तक,
फैली अभिनव लालिमा ।
दीप करो विश्राम,ज्योति से-
अधिक तुम्हारी कालिमा।
देकर शरण तिमर से रण का,
और न अब अभिनय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।1।
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अब तो धूप धरा पर उतरे,
चढ़ किरणों की पालकी।
आँगन में सज उठे रंगोली,
मोती और गुलाल की।
खिल जाए प्राची का पाटल,
जग-उपवन मधुमय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।2।
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ताले खुलें साँकलें चटके,
निशि के कारागार के।
ऐसी हवा बहे हर देहली,
कर दे स्वच्छ बुहार के।
तुझको मुझसे मुझको तुझसे,
नहीं तनिक सा भय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।3।
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पर फैलाकर उड़े चिड़कुली,
विस्तृत नील वितान में,
श्रम के विजय गीत गुंजित हों,
खेतों में खलिहान में।
वृन्दावनी वेणु की धुन में,
जन-गण-मन तन्मय हो।
नूतन सूर्य उदय हो।4।