प्रसव वेदना है यह जिससे,
समय सिंहनी चींख रही है।
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भले रुदन से जग थर्राया।
लगे धरा पर ही अघ आया।
ऊँचे अम्बर से पौरुष की ,
माँग धरित्री भींख रही है।(1)
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काली रात घिरा अँधियारा।
लड़ते-लड़ते दीपक हारा ।
छिपी हार में जीत पूर्व में,
पौ फटती सी दीख रही है।
प्रसव वेदना है…………(2)
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बहुत सहा है ताण्डव नर्तन।
कुछ दिन और सहो मेरे मन।
नूपुर बाँध भाग्य की नटिनी,
लास्य ताल-क्रम सीख रही है।
प्रसव वेदना है…………(3)