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समय सिंहनी चींख रही है

4 मार्च 2017

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प्रसव वेदना है यह जिससे,

समय सिंहनी चींख रही है।

-

भले रुदन से जग थर्राया।

लगे धरा पर ही अघ आया।

ऊँचे अम्बर से पौरुष की ,

माँग धरित्री भींख रही है।(1)

-

काली रात घिरा अँधियारा।

लड़ते-लड़ते दीपक हारा ।

छिपी हार में जीत पूर्व में,

पौ फटती सी दीख रही है।

प्रसव वेदना है…………(2)

-

बहुत सहा है ताण्डव नर्तन।

कुछ दिन और सहो मेरे मन।

नूपुर बाँध भाग्य की नटिनी,

लास्य ताल-क्रम सीख रही है।

प्रसव वेदना है…………(3)

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अब तो अरुणोदय हो।

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समय सिंहनी चींख रही है

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प्रसव वेदना है यह जिससे,समय सिंहनी चींख रही है।-भले रुदन से जग थर्राया।लगे धरा पर ही अघ आया।ऊँचे अम्बर से पौरुष की ,माँग धरित्री भींख रही है।(1)-काली रात घिरा अँधियारा।लड़ते-लड़ते दीपक हारा ।छिपी हार में जीत पूर्व में,पौ फटती सी दीख रही है।प्रसव वेदना है…………(2)-बहुत सहा है ताण्डव नर्तन।कुछ दिन और सह

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चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।

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चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।बढ़ती रहे नाविक ये जीवन की नाव।-धारा अनुकूल कभी।धारा प्रतिकूल कभी।कूल-कूल बदरौटी,धूप कहीं छाँह।चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।बढ़ती रहे नाविक ये जीवन की नाव।-वनपथ पर फूल कहीं।वनपथ पर शूल कहीं।वनपथ के पार कहीं,सपनों का गाँव।चलती रहे नाविक ये जीवन की नाव।बढ़ती रहे नाविक ये

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