झुके न आगे जुल्म के, सहे न अत्याचार।
वह बागी आवाज है,भगत सिंह सरदार ।।
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भगत सिंह सरदार सा, जिसने जना सपूत।
वह माता विद्यावती ,जंगम तीरथ पूत ।।
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महाकाल के भाल पर, ये तिरपुंड ललाम।
भगत सिंह सुखदेव का,राजगुरू का नाम।।
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क्रांति-ऋषी थे देश के, विद्रोही आचार्य ।
प्राण होम करके किया,भारत माँ का कार्य।।
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जीवन था ज्वालामुखी,यौवन था ललकार।
आजादी के स्वप्न थे,आँखों का श्रंगार।।
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युवकों के आदर्श हों,भगत सिंह भय हीन।
क्या कर लेंगे देश का,फिर अमरीका चीन।।
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यौवन की शमशीर हो,इंकलाब की सान।
शीश हथेली पर धरे,ओठों पर जय गान।।