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सब्जीवाली

9 अक्टूबर 2021

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"सब्जी ले लो सब्जी ताज़ी हरी सब्जी " एक स्त्री आवाज़ थी। सुबह के करीब 8:30 बजे थे। मै कमरे से बाहर आया तो देखा एक महिला जिसकी उम्र लगभग 28-30 साल के करीब है, जो  मटमैली पुरानी साड़ी पहने , पैरों में सादी सस्ती चप्पल , चेहरे पर मायूसी और आँखों में एक विशेष लक्ष्य और चमक दिख रही थी। रंग गोरा शरीर पर थोड़े आभूषण भी थे। उस महिला की आवाज़ में गजब की मिठास थी। मैने पूछा बहन जी टमाटर कैसे दिए। वह बोली 39 रूपये किलो और प्याज 50 रु. किलो । मैने एक व्यक्ति के हिसाब से टमाटर, प्याज , आलू और हरी मिर्च धनिया ले लिया। वह बोली भैया जी नये-नये आये हो क्या? मैं बोला हाँ। यहाँ एक बाबूजी रहते थे कहा गए ? मैने कहा पता नही में कल शाम को ही यहाँ रहने आया हूँ, वे शायद अपने गांव चले गए हो। क्यों  कुछ काम था क्या? नहीं उनकी पत्नी पर सब्जी के 300 रूपये थे। जाने से पहले मेरे पैसे तो दे जाते , इमानदारी का तो जमाना ही नही रहा । मैने पैसे दिए वह आगे बढ़ गयी। उसके चेहरे पर मायूसी और चिंता की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी। मैने खाना बनाया और ड्यूटी चला गया। 

                 मै शाम को 6:30 बजे बाजार घूमने गया । एक दुकान पर बैठ समोसा खा रहा था की सामने वाली मेडिकल दुकान पर सब्जी वाली बाई दिखी वह शायद दवाईयां खरीद रही थी। मुझे लगा बच्चों के लिए ले जा रही होंगी। तभी वहाँ बहस छिड़ गयी। वहाँ 8-9 लोग जमा हो गए। मैं भी पहुँच गया। दुकानदार उस महिला को दवाई देने से इंकार कर रहा था। क्योकि पुराने 500 रूपये उधार थे। और दवाई 2000 रूपये की थी। परन्तु उसके पास सिर्फ 1200 रूपये थे। वह महिला बोली मैं आपके एक एक पैसे दे दूंगी। मुझे दवाई दे दो अगर मेरे पति ने दवाई नही खाई तो उनकी हालत ज्यादा ख़राब हो जाएँगी। मुझ पर विश्वास कीजिये और वह हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगी। तभी भीड़ में से कुछ लोग बोलने लगे। गरीबो का क्या भरोसा पैसे दे या न दे , तो कुछ बोलने लगें है क्या जो देंगी? और कोई उधार भी कितना दे। उस दुकानदार ने पुराने 500 रूपये काट के 700 रूपये वापस कर दिए और कहा दूसरी दुकान से ले जाओ 1300 रूपये उधारी नही रख सकता। वह बोली मैं कहा से लाऊँगी आज के आज 1300₹  और दुबारा हाथ जोड़ कर बोली भैया मुझे दवाई दे दो अगर मेरे पति ने एक दिन दवाई नही खाई तो उनकी हालत नाजुक हो जाएँगी। परन्तु वह दुकानदार टस से मस न हुआ।उस महिला की आँखों से आँसू बहने लगे । भीड़ कम हो गयी। मै वही खड़ा था। उसकी कर्मनिष्ठा और सेवाभाव देख मेरा ह्र्दय पिघल गया। मैने पूछा बहन जी कितने रूपये कम है। वह आंसू पोछते हुए बोली 1300 रूपये और मुझे पहचानते हुए बोली भैया जी आप । मैने 1300 रूपये देते हुए कहा ये लो पैसे और दवाई लेकर घर जाओ। उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर ख़ुशी तैरने लगी वह बोली भैया जी मुझ पर यकीन रखना मै आपके एक -एक पैसे चुकता कर दूंगी। उसकी आवाज़ में विश्वास और हौसला था। उसने झट से दवाई ली और जल्दी से घर की ओर बढ़ने गयी। रात को मेरे मन में बार -बार उस सब्जी वाली के बारे में ख्याल आ रहे थे उसकी सेवाभावना और कर्मनिष्ठ के आगे उसकी गरीबी उसका मजाक उड़ा रही थी । फिर भी वह हिमालय सी अटल अडिंग थी। उसका एक ही लक्ष्य था अपने पति का इलाज़।

       दूसरे दिन वही मधुर आवाज़ " सब्जी ले लो सब्जी ताजी हरी सब्जी" मै आज सुबह जल्दी उठ गया था। आज मुझे सब्जी की जरुरत नही थी फिर भी आवाज़ आयी भैया जी सब्जी ले लो ताजी है
 और वह झट सब्जी तोलने लगी। मै कुछ न बोल सका । मैने पैसे दिये तो वह बोली रहने दो आपने दिये है उसमें से काट लुंगी। मै बोला वैसे मुझे सब्जी की जरुरत नही थी। रख लो भैया आज न सही कल बना लेना ले लो वैसे भी आज ज्यादा धंधा नही हुआ। मैने पूछा आपके पति को क्या हुआ है।  वह बोली मेरे पति को कैंसर है डॉक्टर बोलते है ऑपरेशन करना पड़ेंगा करीब 100000 का खर्च आयेगा। मै गरीब हूँ कहाँ से लाऊँगी इतना पैसा । क्या आपके परिवार में कोई नही है। सास ससुर नही रहे गांव के दंगे में घर जलकर खाक हो गया। तो हम शहर आ गए। एक बेटा है जो मेरे भाई के पास रहता है। मैने कहा क्या तुम्हारा भाई तुम्हारी मदद नही करता । कैसे करे वह भी दिन भर मेहनत मजदूरी करता है। और अपने परिवार को पालता है। हम गरीब तबके के लोग है। अगर एक महीने में ऑपरेशन नही करवाया तो हालत ज्यादा ख़राब हो जाएँगी। इसलिए मैने सब्जी बेचने का धंधा अपना लिया दोपहर और शाम को बड़े लोगो के यहाँ बर्तन मांजने पोछा लगाने चली जाती हूं। हफ्ते में 2000 रूपये की दवाई होती है और खाना पीना इस महंगाई में कितना मुश्किल है। घर सम्भालना। मैने पूछा आप रहती कहा हो। वह बोली झोपड़ पट्टी में । इसके आगे मेरी कुछ पूछने की हिम्मत न हुई। उसकी गरीबी और स्थिति देख ऐसा लग रहा था। मानो उसका पति नही बल्कि वह खुद कैंसर से पीड़ित है। 

    कुछ दिन बाद में 4 दिन की छूटी ले घर चला गया। जब लौट आया तो मैने सब्जी के लिए सब्जी वाली का इंतज़ार किया , परन्तु वह 4-5 दिन हो गयी वह आयी नही। मेरे मन में तरह तरह के ख्याल आने लगे न जाने क्यों मुझे उसके पति और उससे सहानुभूति हो रही थी। में बाजार से सब्जी ले आया। पड़ोस में शर्मा जी को दस्त लग गए तो उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। मै भी उनसे मिलने अस्पताल पहुचा अचानक मुझे सब्जी वाली दिखी वह कुछ फल और दवाई हाथ में ले एक कमरे में गयी। में भी उसके पीछे गया और खिड़की से झांककर देखा तो दंग रह गया। शायद उसके पति का ऑपरेशन हुआ है। और अब वह स्वस्थ है साथ में उसका भाई और बेटा भी था। उसके चेहरे पर असीम संतोष की रेखाए थी। मै चाह कर भी उनसे मिलने न जा सका । मन में कई विचार आ रहे थे । कहा से आये होंगे इतने पैसे किसने मदद की होंगी। अगर में गया तो वह मुझे देख मेरे पैसे का भार समझ थोड़ी चिंतित न हो आदि अनेक ख्यालो में खोया में शर्मा जी से मिलने के बाद घर की ओर बढ़ गया। मैने ऑटो किया और जाने लगा। तभी मुझे आवाज़ आई भैया जी रुको अरे रुको न भैया जी। मै आगे निकल चूका था। पीछे पलट के देखा तो सब्जी वाली बाई मुझे आवाज़ दे रही थी। में पीछे लौट कर न जा सका और आगे बढ़ गया। 

परसो रक्षाबंधन है। मेरी इकलौती बहन जो मुझे हर साल राखी बांधती है उसके लिए मैने सामान ख़रीदा और वापस घर निकल पड़ा मेरे घर का रास्ता 5-6 घंटे का है । घर पर राखी का त्यौहार खूब धूम धाम से मनाया एक दिन रुक में दिर वापस शहर आया । दूसरे दिन सुबह 9 बजे पोस्टमेन आया और एक लिफाफा हाथ में थमा गया। मैने लिफाफा खोला तो हैरान रह गया उसमे एक सुन्दर राखी और 1200 रूपये थे। साथ में एक ख़त था मैने ख़त पड़ा वह सब्जी वाली का था। उसमें उसके घर का पता लिखा था मुझे खाना खाने घर पर बुलाया गया था। मै तैयार हो उसके घर पंहुचा तो देखा उसका घर छोटा सा  जिसके ऊपर एक दो टिन और प्लास्टिक बिछी हुई है आस पास उबड़ खाबड़ लड़की के सहारे मिटटी की दीवाल है जिसके नीचे चूहों ने गड्ढे कर दिए है। एक टुटा हुआ छोटे छोटे छेद युक्त टिन का दरवाजा था। उस घर के आस पास भी वैसे ही घर बने हुए थे। कुछ लोगो के मकान अच्छे भी थे मैने बाहर से आवाज़ लगाई एक पुरुष बाहर आया और मुझसे अंदर आने को कहा अंदर एक ही कमरे में रसोई और रहना खाना पीना सब कुछ एक ही साथ था। बर्तन नाम मात्र के थे। चकित तो तब हुआ जब देखा की सब्जी वाली के शरीर पर भी गहने नहीं थे। में न बताते हुए भी समझ गया वहाँ उसका भाई -भाभी पति और बेटा था। वह बोली भैया जी ये मेरे पति है । और यह मेरा भाई और ये उनकी पत्नि है । ये मेरा बेटा है। कल शाम को ही अस्पताल से छूट्टी मिली तो सबसे पहले आपको राखी भेजी । रात को हम त्योहार नही मना पाये इसलिए मैने भैया को रोक लिया। आज हमारे घर राखी का त्यौहार है। मैने उसके पति से उनकी तबियत के बारे में पूछा उन्होंने कहा अब  अच्छी है । उसके भाई ने दो आसान बिछाए और हम दोनों बैठ गए और फिर दोनों को राखी बाँधी । मैने उपहार स्वरूप 1200 रूपये वापस कर दिए तो उसने लेने से इंकार कर दिया बहुत मनाने पर मानी । उसने बताया की उसने अपने पति के इलाज़ के लिए मंगलसुत्र, पैर की पाजेब, अंगूठी , कान की बाली नथनी और और घर के कुछ बर्तन बेच दिए तो कुछ उसके भाई ने दिये । तब जाकर ऑपरेशन हुआ। उसने बताया की डॉक्टर ने कहा है की उसके पति बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगे। 

    उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहरे तैर रही थी। ऐसा लग रहा था उसका पति नही बल्कि खुद बीमारी से स्वस्थ हुई है। उसकी ख़ुशी में उसका चेहरा पहले से ज्यादा सुन्दर दिख रहा था। जो सुंदरता गहने न दे सके वह ख़ुशी दे गयी। मैने खाना खाया पर घर जाने की अनुमति मांगी। 

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