अच्छा लगता हैकवि: शिवदत्त श्रोत्रियकभी-कभी खुद से बातें करना अच्छा लगता हैचलते चलते फिर योहीं ठहरना अच्छा लगता है ||जानता हूँ अब खिड़की पर तुम दिखोगी नहींफिर भी तेरी गली से गुजरना अच्छा लगता है ||शाख पर रहेगा तो कुछ दिन खिलेगा तू गुलतेरा टूटकर खुशबू में बिखरना अच्छा लगता है ||आईने तेरी जद से गुजरे हु