कामाग्नि से जन्म है होता,
जठराग्नि से जीवन चलता।
चिताग्नि से मोक्ष है मिलता,
अग्नि ही ब्रह्मा विष्णु महेश।1।
अग्निमय पृथ्वी अग्नि जलों में,
वायु व्योम में व्याप्त अग्नि है।
सूर्य चन्द्र तारे नक्षत्र सब,
आच्छादित ब्रह्माण्ड अग्नि से। 2।
पवित्रता शुचिता की देवी,
रूप रंग सब देने वाली।
अग्नि न्याय है पाश वरुण का,
स्वर्ग नर्क सुख दुख भी अग्नि।3।
अग्नि श्वास है अग्नि ही जीवन,
अग्नि प्राण है अग्नि प्रकाश।
अग्नि है जीवन देने वाली,
अग्नि ही जीवन लेने वाली।4।
अग्नि है भोजन अग्नि ही जल है,
अग्नि वनस्पति अग्नि अन्न है।
अग्नि व्याधि है अग्नि ही औषधि,
अग्नि युवा है अग्नि ही वृद्ध है।5।
अग्नि प्रेम है शान्ति अग्नि है,
क्रोध अग्नि है अग्नि ही ईर्ष्या।
अग्नि सृजन है अग्नि विखण्डन,
अग्नि सृष्टि है अग्नि प्रलय है। 6।
जन्म नहीं है बिना अग्नि के,
विवाह नहीं है अग्नि बिना।
बिना अग्नि के मोक्ष नहीं है,
यज्ञ नहीं है अग्नि बिना।7।
हवि यज्ञ सब अर्पित तुझको
स्वीकार करो हवि मेरी अग्नि।
ॐ नमन है अग्नि तुझे,
ॐ प्रशस्ति है अग्नि तुझे।8।
...................... रवीन्द्र श्रीमानस